पायनियर संवाददाता-जगदलपुर
कोरोना ने जब पूरे विश्व में संचालित सभी गतिविधियों को मंद कर दिया, उस समय बस्तर जैसे वनांचल में शिक्षा, सेहत और रोजगार के लिए पंचायतों के माध्यम से इसे फिर से गति प्रदान की गई। खासतौर पर ग्रामीण अंचलों में विकास की रफ्तार में किसी प्रकार की कमी न आए, इसलिए पंचायतों को मिले अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरुक करने का कार्य किया गया। इस कार्य के लिए स्थानीय बोलियां जैसे हल्बी और गोंडी का उपयोग भी किया गया।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अंतिम व्यक्ति तक के कल्याण के लिए पंचायत व्यवस्था को सशक्त किए जाने के पक्ष में थे। इसी परिकल्पना को लेकर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को जन-जन तक पहुंचाने और पंचायतों के क्षमता विकास के लिए महात्मा गांधी की जयंती (दो अक्टूबर) के अवसर पर ही बस्तर जिले में ‘बाढ़ती पंचायत-आमचो बस्तर’ अर्थात बढ़ता पंचायत-हमारा बस्तर अभियान प्रारंभ किया गया। कोरोना के कारण शिक्षा, सुपोषण और रोजगार के क्षेत्र में आ रही बाधा को दूर करने के लिए प्रारंभ इस अभियान के तहत पंचायतों की भूमिका को भी सशक्त करने का कार्य किया गया।
बस्तर में विकास को गति देने के लिए शिक्षा के मशाल से हर घर को रोशन करना यह तभी संभव है, जब सभी मिल-जुलकर यह प्रयास करें। शिक्षा देने के लिए आमतौर पर स्कूल शिक्षा विभाग को जिम्मेदार माना जाता हैैै और शालाओं के माध्यम से बच्चों में शिक्षा की बुनियाद डाली जाती हैै। कोरोना काल में बच्चों को शिक्षा देने की गति मंद न हो जाए, इसलिए राज्य सरकार ने पढ़ई तुंहर दुआर जैसे कार्यक्रम संचालित किए गए। बस्तर जिला प्रशासन द्वारा लाउड स्पीकर के माध्यम से बच्चों को शिक्षा से जोड़े रखने का अभिनव प्रयास किया गया, जिसकी न केवल प्रशंसा पूरे प्रदेश में हुई, बल्कि इसे पूरे प्रदेश में भी लागू किया गया। इसके साथ ही मोहल्ला कक्षा, सीख कार्यक्रम और पठन अभियान निरंतर संचालित किये जा रहे हैं। इन कार्यक्रमों को गति देने और निरंतर जारी रखने के लिए समाज प्रमुखों एवं पंचायत प्रतिनिधियों को इस कार्यक्रम से जोडऩे का कार्य भी किया गया। शिक्षकों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, पंचायत प्रतिनिधियों, शाला प्रबंधक, स्वयंसेवी संस्थाओं की उपस्थिति में शिक्षा गुणवत्ता में सुधार के लिए मासिक बैठकें आयोजित की गईं। अपनी पढ़ाई पूरी कर चुके युवाओं ने भी इस अभियान में अपनी सहभागिता देने के लिए स्वयंसेवी के तौर पर मोहल्लों में जाकर बच्चों को पढ़ाने का कार्य किया गया। पंचातय प्रतिनिधियों ने पढ़ाई को रुचिकर बनाने के लिए विभिन्न प्रतियोगिताएं भी आयोजित कर बच्चों को पुरस्कृत अपनी महत्वपूर्ण भूमिका इस अभियान को सफल बनाने में निभाई। इसके साथ ही बेहतर शिक्षा प्रदान करने के लिए भी निरंतर सहयोग प्रदान किया गया।
किसी भी समाज में विकास को गति देने के लिए सभी लोगों का स्वस्थ और सुपोषित होना आवश्यक हैै। इसकी शुरुआत बच्चे के गर्भ में पहुंचने के साथ ही शुरु होती है और जन्म से छ: वर्ष तक की आयु के बच्चों को सबसे अधिक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, क्योंकि बच्चों के मस्तिष्क का विकास भी इसी दौरान सबसे अधिक होता है। बचपन में पोषक तत्वों की कमी का प्रभाव जीवन भर रहता है। राज्य शासन के साथ ही जिला प्रशासन द्वारा भी जिले में कुपोषण की दर को कम करने के लिए निरंतर प्रयास किया जा रहा है, किन्तु पालकों में जागरुकता की कमी के कारण इस अभियान की सफलता के लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता देखी गई। बस्तर जिला प्रशासन द्वारा संचालित ‘हरिक नोनीबेरा’ और महिला एवं बाल विकास विभाग के माध्यम से कुपोषण को दूर करने के लिए संचालित शासकीय योजनाओं का लाभ गर्भवती माताएं और शिशुवती माताएं, छोटे बच्चों के साथ किशोरी बालिकाएं उठा सकें, इसके लिए पंचायत के प्रतिनिधियों के माध्यम से लोगों को जागरुक करने का कार्य प्रारंभ किया गया। इस अभियान से विभिन्न समाज प्रमुखों को भी जो?ा गया। आंगनबाड़ी केन्द्रों में पोषण उद्यान लगाकर सब्जियों की खेती के लिए भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके साथ ही सभी टीके लगवाना, वजन करवाना और जरुरत पडऩे पर पोषण पुनर्वास केन्द्र पहुंचाकर स्वास्थ्य सुविधा का लाभ लेने के लिए भी प्रेेरित किया जा रहा है।
बस्तर जिले के अधिकांश ग्रामीण लघु सीमांत कृषक या कृषि मजदूर हैं और आमतौर पर खरीफ सीजन में धान की कटाई की बाद रोजगार के लिए बड़े शहरों की ओर रुख करते हैं। इस वर्ष कोरोना के कारण बड़े शहरों की आर्थिक गतिविधियों में भी प्रभाव पड़ा है, जिसके कारण ग्रामीणों के प्रवास में कमी देखी जा रही है। इन ग्रामीणों को स्थानीय तौर पर रोजगार उपलब्ध करने के लिए पंचायत प्रतिनिधियों और समाज प्रमुखों को प्रेरित करने के साथ ही रोजगारमूलक कार्यों से जोडऩे का प्रयास किया जा रहा है। मनरेगा जैसे रोजगार सृजन कार्यक्रमों के माध्यम से इन प्रवासी मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराने के साथ ही प्रदेश सरकार के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम नरवा, गरुआ, घुरवा, बाड़ी से भी जोड़ा गया। ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि आधारित गतिविधियां निश्चित तौर पर सबसे अधिक रोजगार उत्पन्न करती हैं और नरवा, गरुआ, घुरवा, बाड़ी जैसे कार्यक्रम किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है। नरवा, गरुआ, घुरवा, बाड़ी कार्यक्रम के तहत बनाए गए गोठानों में वर्मी और नाडेप कम्पोस्ट बनाने के कार्य को भी गति दी गई। जल संचय और जल संवर्द्धन जैसे कार्यों से बारहमासी खेती के अवसर उपलब्ध कराने के प्रयासों के साथ ही डेयरी, बकरीपालन और मुर्गीपालन जैसी गतिविधियों को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। वनोपजों का संग्रहण के साथ-साथ प्रसंस्करण से मूल्यधन की संभावनाओं को देखते हुए वनोपज प्रसंस्करण इकाइयों के स्थापना की दिशा में भी कार्य किया जा रहा है। रोजगारमूलक कार्यों से महिला स्वसहायता समूहों को जोडऩे के साथ ही आवश्यकता अनुसार प्रशिक्षण का कार्य भी जिला प्रशासन के माध्यम से प्रदान किया जा रहा है। इसके साथ ही प्रवासी मजदूरों को निर्माण एजेंसियों के माध्यम से भी प्राथमिकता के साथ रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने का कार्य किया जा रहा है।
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