तीन हिंदी भाषी राज्यों के चुनावी नतीजों ने निश्चित ही कांग्रेस को घोर संकट की स्थिति में डाल दिया है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में पार्टी को न सिर्फ हार का सामना करना पड़ा बल्कि अपने दिग्गज नेताओं की कुर्सी न बचा पाने का दुःख भी सहना पड़ा। अनुभवी कमलनाथ हों या अशोक गहलोत या अपने अच्छे काम और लोकप्रियता के लिए चर्चित भूपेश बघेल, सभी नेता चारों खाने चित्त नजर आये। जिस प्रचंड बहुमत के साथ बीजेपी ने इन तीनों ही राज्यों में जनादेश हासिल किया, वह बेशक कांग्रेस को आत्ममंथन और गंभीर चिंतन करने पर मजबूर कर रहा है। चूंकि कुछ ही महीने में लोकसभा चुनाव 2024 होने वाले हैं, और यह हार महागठबंधन की मुखिया बन कर सबसे आगे खड़ी कांग्रेस के नेतृत्व पर सवालिया निशाना लगा रहे हैं, इसलिए पार्टी के पास कुछ सबसे महत्वपूर्ण गलतियों पर फोकस करने और उन्हे सुधारने के लिए बहुत कम समय रह गया है।
मेरे नजरिये से कांग्रेस की सबसे पहली और प्राथमिक गलती युवाओं को दरकिनार करना मानी जा सकती है, जिसका खामियाजा उसे आम चुनावों में भी वनवास के साथ उठाना पड़ सकता है। यानी वोट प्रतिशत के मामले में हो या सीटों के आधार पर, यदि पार्टी द्वारा युवा चेहरों को न्योता और तवज्जो नहीं दी गई तो बीजेपी का कांग्रेस मुक्त भारत का नारा अपनी जड़ें और मजबूत कर सकता है। अनुभव और आकांक्षाओं के साथ युवा शक्ति को आगे बढ़ाना ही कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम करेगा। ऐसा इसलिए भी क्योंकि हाल में हुए विधानसभा चुनाव में भी पार्टी 55-60 साल से अधिक के प्रत्याशियों पर ही भरोसा करती दिखी, जिसके परिणाम अब सामने हैं। नकारात्मक परिणामों के कई अन्य कारण भी हो सकते हैं लेकिन एक प्रमुख कारण किसी युवा चेहरे और नेतृत्व का न होना भी है। राजस्थान हो मध्य प्रदेश या छत्तीसगढ़, सचिन पायलेट या जीतू पटवारी जैसे नेताओं को छोड़ दें तो कांग्रेस के पास बीजेपी की तरह टी. सूर्या या के अन्नामलाई जैसे नेता नहीं हैं जिसके बल पर वह युवाओं को आकर्षित कर सके। भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या ने एमपी में कैलाश विजयवर्गीय के लिए कैम्पेन किया और जाहिर तौर पर युवाओं को आकर्षित करने में सफल रहे। लेकिन कांग्रेस के पास बाहरी राज्यों में भी ऐसा कोई नेता नहीं रहा जिसके इन तीनों ही प्रदेश में आने से कांग्रेस के प्रति एक अलग उत्साह का माहौल देखा जा सके।
एक बात और साफ़ करना और कांग्रेस को इस बात के लिए क्लियर रहना जरुरी है कि सिर्फ राहुल गांधी के बल पर कोई भी जंग नहीं जीती जा सकती है, क्योंकि खुद राहुल को भी अपने सरीखे यानी पार्टी के प्रति ऊर्जा जोश व समर्पण वाले नेता की जरुरत है। यदि वह खुद को पीएम मोदी के बराबर या उनसे ऊपर आंकने की गलती कर रहे हैं तो यह आम चुनावों में कांग्रेस के लिए ताबूत में आखिरी कील साबित हो सकता है। लिहाजा राहुल तो एक तरफ से आक्रमणकारी रहें हीं लेकिन कुछ अन्य नेताओं, यानी 45-50 से कम वाले युवा नेताओं को भी तैयार करें, जो जनता में बहुत अधिक लोकप्रियता भले न रखते हों लेकिन जनता का भरोसा जीतना जानते हों। अंत में एक और बात को समझना जरुरी है कि कांग्रेस की गठबंधन की गांठ दिन पर दिन कमजोर होती जा रही है, जिसे नीतीश और अखिलेश के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में कुछ राज्यों में युवा नेता खड़ा करने से भी काम नहीं चलने वाला है। पार्टी को लगभग सभी राज्यों में एक युवा नेतृत्व की जरुरत होगी, जो कांग्रेस का चेहरा भी बने और चहीता भी…
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