जलवायु संकट : चुनाव आपके हाथ में, अभी नहीं तो कभी नहीं
कार्बन डाइऑक्साइड (कार्बन), मीथेन और अन्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से पृथ्वी का औसत तापमान औद्योगिक युग के पहले के तापमान से 1.1 डिग्री सेल्सियस (डिग्री) बढ़ा है। इसे नियंत्रित करने के लिए 2015 में पेरिस संधि में निर्णय हुआ कि तापमान को 2 डिग्री से नीचे रखना है और 1.5 डिग्री रखने के लिए प्रयत्न करना है। इसके लिए विश्व को उत्सर्जन 7 प्रतिशत प्रतिवर्ष कम करना पड़ेगा परंतु इसके विपरीत हम इसे बढ़ा रहे हैं।
यूएनईपी की रिपोर्ट के अनुसार, हम इसी गति से उत्सर्जन करते रहे तो वर्ष 2027 तक तापमान 1.5 डिग्री बढ़ जाएगा, 2041 तक 2 डिग्री। 1.5 डिग्री कोई सेफ लेवल नहीं है। 2 डिग्री पहुंचने के बाद अर्थ सिस्टम को कोहनी के बराबर भी झटका लगा तो तापमान 2.5 डिग्री पर पहुंच जायेगा, उसके बाद होने वाली घटनाओं से हम अज्ञात की ओर जाने वाली अप्रिय और भयानक यात्रा चालू कर देंगे।”
भारत में मानसून अत्यंत ताकतवर, अनियमित और अप्रत्याशित होगा, हीटवेव, आकाल सहित चरम मौसमी घटनाएं जैसा अभी असम में हुआ, हर साल बढ़ेंगी। जल्दी पड़ी गर्मी और हीट वेव से पूरे विश्व में गेहूं की फसल खराब हो गई है यह आगे भी होता रहेगा. हमें 135 करोड़ की उस बढ़ती हुई आबादी को संभालना होगा जिसके आधे के पास कोई सम्पति नहीं है, इससे और अधोसंरचना के नुकसान से जीडीपी लगातार गिरेगी।
अब से जीवन का बचा हर साल, पिछले साल से ज्यादा गर्म होगा। इससे आगे स्थितीयां और भयावह होती जाएगी, कुछ करें तो इसे रोका जा सकता है, नहीं तो हमारी अगली पीढियों के दौरान महाविलुप्ति निश्चिंत है।
क्या कर सकते हैं हम
आधिकांश लोगों का कहना है हम क्या कर सकते है? कुछ नहीं करने से तो अच्छा है कुछ करें। कम से कम संकट को तो समझ लें। इसे नहीं समझना परिवार सहित आत्महत्या करने के समान है: पढेंगे तो समझेंगे कि विपत्ति आ गई है। बिना कार्बन उत्सर्जन किये कोई भी मानव गतिविधि नहीं हो सकती। व्यक्तिगत स्तर पर सबको अनावश्यक धन का उत्पादन और प्रदर्शन छोड़ना होगा, खपत को सिर्फ जरुरत तक रखना होगा, सामूहिक गतिविधियां कम करनी होगी। पर यहीं तक अपने को सीमित मत रखिये, इतने से महाविपत्ति नहीं टाली जा सकती।
पिछले 50 सालों में विश्व के राजनेताओं ने जलवायु परिवर्तन का सच हमसे छुपाया है। आज भी टेक्सला और वृक्षारोपण के नाम से झूठ परोस रहे हैं। हम भले अक्षय उर्जा में कुछ काम कर रहे हों परन्तु 2030 तक कोयले से बिजली उत्पादन का कार्बन उत्सर्जन दुगना हो जायेगा। भारत तीसरा सबसे जयादा कार्बन उत्सर्जन करने वाला देश है, जो सब से अंत में 2070 में कार्बन न्यूट्रल होगा। हमें समझना होगा कि हम आपातकाल में है। विश्व भर में अब हमें ग्रीन राजनेता ही नहीं बल्कि जिद्दी ग्रीन राजनेता चाहिए, जो कठोर निर्णय लेकर धरती के साथ चल रहे उत्पात को बंद करायें और सबको खिलायें। ऑस्ट्रेलिया में अभी चुनाव जलवायु पर लड़ा गया है। हमको भी आगे आना पड़ेगा, युवा पीड़ी की बात सब सुनेगें, अभी ही निर्णय करना पेडगा कि आपको 1.5 डिग्री तापमान चाहिए या 2 डिग्री?
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