पायनियर संवाददाता रायगढ़
एनटीपीसी लारा के मुख्य द्वार पर चल रहे आंदोलन के सोमवार को 100 दिन पूरे हो गए। अपने अधिकारों के लिए संघर्षरत एनटीपीसी भूविस्थापितो ने लगातार 100 दिन से शांतिपूर्वक धरना प्रदर्शन किया है। विस्थापितों का कहना है कि एनटीपीसी स्थाई नौकरी की मांग को पूरा करे और उन्हें अपना अधिकार प्रदान करें। विदित हो कि शासन-प्रशासन के स्पष्ट निर्देश के बाद एनटीपीसी विस्थापितों को नौकरी देने की प्रक्रिया में ढूलमूल रवैय्या अपना रही है।
आंदोलनकारियों ने बताया कि लगातार 8 वर्षों के संघर्ष के पश्चात भी विस्थापितों को अधिकार नहीं मिलना समझ से बाहर है। जहां मुख्यमंत्री ने उच्च स्तरीय बैठक कर लारा विस्थापितों को योग्यता अनुसार नौकरी प्रदान करने के लिए आदेश दे दिए हैं। वही आदेश के परिपालन के लिए जिला कलेक्टर ने लगातार मामले को संज्ञान में लिया और एनटीपीसी अधिकारी एवं विस्थापितों की बैठक लेकर आदेश को अमल करने की बात कही। जिस के संदर्भ में एनटीपीसी द्वारा जारी 79 पदों पर भर्ती प्रक्रिया को आगे बढ़ाया गया। जिसमें 121 भूविस्थापित युवाओं को चिन्हाकित किया गया था।
जिसके अंतर्गत 36 आंदोलनकारी भी शामिल थे, लेकिन आंदोलनकारियों को प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया और केवल छह अभ्यर्थियों को चयनित कर एनटीपीसी प्रबंधन द्वारा शासन प्रशासन के आदेश की खानापूर्ति किया गया। उन्होंने बताया कि भर्ती प्रक्रिया के दौरान योग्यता- पात्रता और प्रक्रिया का खेल खेलते हुए कई भूविस्थापित युवाओं को प्रक्रिया से वंचित किया गया। इस पर विस्थापितों ने कहा है कि जब 2449 किसानों के 3500 एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई थी तब किसी भी प्रकार की पात्रता- योग्यता नहीं देखी गई थी, लेकिन अब जब अधिकार देने की बारी आई है, तब एनटीपीसी प्रबंधन पात्रता-योग्यता का षड्यंत्र रच हमें अपने अधिकारों से वंचित कर रही है। विदित हो कि अधिग्रहित क्षेत्र में जमीन दलालों और एनटीपीसी अधिकारियों द्वारा भी जमीन खरीदा गया था। जिन्होंने पुनर्वास लाभ की मंशा से कई प्रकार के भ्रष्टाचार किए थे, जिनका हर्जाना इन बेकसूर किसानों को भुगतना पड़ा।
जो पूर्वजों की जमीन पर वर्षों से खेती कर रहे स्थानीय बाशिंदे हैं, फिर भी पुनर्वास की मांग पर लारा पीडि़तों को लगातार 8 साल तक संघर्ष करना पड़ रहा है।सत्र 2018 में 210 दिन का सबसे लंबा आंदोलन किया जा चुका है, लेकिन अब जब शासन-प्रशासन के कड़े रुख से विस्थापितों को नौकरी देने का रास्ता साफ हो चुका है, तब भी एनटीपीसी की मनमानी करना समझ से परे है।
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