पायनियर संवाददाता राजनांदगांव
राजनांदगांव मेडिकल कॉलेज सह जिला अस्पताल की अव्यवस्था ने नवजात बच्चे की मौत का दर्द लिए एक दिव्यांग को भीख मांगने पर मजबूर कर दिया। अपनी दिव्यांग पत्नी के ईलाज के लिए रकम न होने की सूरत में यह दिव्यांग यहां आने-जाने वालों के सामने हाथ फैलाता रहा। राजनांदगांव से करीब 140 किमी दूर वनांचल बकरकट्टा के तेंदुभांटा के निवासी रामजश नेताम पर बीते दु: ख और उसकी मजबूरी आंखे छलका सकती हैं।
रामजश ने बताया कि वह 6 दिसंबर को अपनी पत्नी हेमलता नेताम को राजनांदगांव जिला अस्पताल लेकर पहुंचा था। वह गर्भवती थी। ऑपरेशन कर डिलीवरी के लिए मुझसे डॉक्टर और स्टॉफ ने पांच हजार रुपए मांगे थे। मैं नही दे सका। 9 दिसंबर को दो दिन जब ऑपरेशन किया गया तो मेरा बेटा मर चुका था। पत्नी गंभीर थी। उसे आईसीयू में रखा गया है। रोजाना बाहर से दवाईयां लाने पर्ची लिखी जा रही है। पैसे हैं नहीं और ईलाज जरुरी है। ऐसे में मैं भीख ही मांग सकता था। यह आदिवासी जोड़ा पूरी तरह से दिव्यांग है। जन्म के कुछ घंटों के बाद पुत्र की मौत हो गई थी। पिता का आरोप है कि नर्स और चिकित्सक ने नवजात को उल्टा रखकर खरोचा जिससे वह जख्मी हो गया और इसी के चलते उसकी मौत हो गई।
रामजश की यह आपबीती सिस्टम को लेकर कई सवाल उठाती है। जब इस मामले को लेकर मीडिया और समाजसेवी सामने आए तब संयुक्त संचालक व अधीक्षक प्रदीप बेक बाहर आए। इससे पहले उसे अस्पताल में किसी तरह की मदद न मिल सकी थी। मामला बिगड़ता देख अधीक्षक बेक ने जांच और मदद की बात तो कही है लेकिन हाल-फिलहाल में यहां हुए मामलों को लेकर इस पर भरोसा कर पाना मुश्किल है।
ईलाज में लापरवाही की
पीडि़त रामजश ने आरोप लगाया है कि अस्पताल के स्टॉफ ने पैसे न देने के चलते उसकी पत्नी के ईलाज में कोताही बरती जो कि उसके बच्चे की मौत का और पत्नी की बिगड़ी तबीयत का असल कारण है। उसने कहा कि, मैंने विनती करते हुए पैसे के लिए कुछ समय की मोहलत भी मांगी थी लेकिन कोई मानने को राजी नहीं हुआ। इसकी कीमत मैंने अपने बच्चे को खोकर चुकाई है। उसने बताया कि, मैं जैसे तैसे अपनी गुहार लेकर कलेक्टर कार्यालय तक भी गया था। उसने न्याय के लिए शासन-प्रशासन से गुहार लगाई है।
दिव्यांग महिला को है
दिल की बीमारी
डॉक्टरों ने बताया कि रामजश की पत्नी को दिल से जुड़ी बीमारी है। उसमें खून भी काफी कम है। इस बीच गर्भवती होना और ऑपरेशन से डिलीवरी किए जाने के चलते उसकी हालत और बिगड़ी है। बहरहाल, उसे आईसीसीयू में निगरानी में रखा गया है और उसकी स्थिति अभी स्थिर है। डॉक्टर यह भी बता रहे हैं कि बच्चा गर्भ में ही खत्म हो चुका था। डॉक्टरों ने इस बात से भी इंकार किया कि किसी ने दिव्यांग से रिश्वत ली है या मांगी है।
किसी दलाल पर शक
अस्पताल के भीतर कई दलाल 24 घंटे सक्रिय रहते हैं। आशंका है कि दिव्यांग से पैसे की मांग किसी दलाल ने ही की होगी और उसे यह जताया गया होगा कि वह अस्पताल प्रबंधन का ही हिस्सा है। गौरतलब है कि पहले भी ऐसी कई शिकायतें सामने आ चुकी है। खून के बदले रकम वसूलने का काम तो यहां कई वर्षों से चल रहा है। अस्पताल प्रबंधन भी ऐसे दलालों को जानता है लेकिन स्टॉफ के कुछ लोग हैं जो ऐसे लोगों की मदद करते हैं। इन पर भी नकेल कसना काफी जरुरी है।
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