July 1, 2025

धान के बाद अब तरबूज की तैयारी, महाराष्ट्र और दिल्ली का मिला साथ

कोरोनाकाल से उबरने की तैयारी में किसान

पायनियर संवाददाता-भाटापारा

कोरोना काल के शुरुआती महीनों में भारी नुकसान उठा चुके तरबूज उत्पादक किसानों ने एक बार फिर से तरबूज की खेती की तैयारी चालू कर दी है। उद्यानिकी फसलों की ओर बढ़ते रुझान के बाद महानदी तट पर बसे कसडोल के ग्रामीण अब धान के खेतों में नहीं बल्कि नदी तट पर तैयारी करते दिखाई दे रहे हैं। यह साहस की मिसाल ही है कि बढ़े हुए खर्चों के बीच फिर से खुद को खड़ा करने की कोशिश की जाने लगी है।
कसडोल और महानदी। एक दूसरे के पूरक कहे जा सकते हैं। खरीफ में यह खेतों की प्यास बुझाती है तो उन सब्जी उत्पादक खेती करने वालों का मजबूत सहारा बनती है। रबी में यह उन तरबूज उत्पादकों को भरपूर जगह देती है जो देश के कोने-कोने तक तरबूज पहुंचाते हैं। चालू बरस के शुरुआती महीनों में भी तरबूज की खेती का रकबा बढ़ाया जा कर उत्पादन पहुंचाने की तैयारी थी लेकिन ऐन सीजन के शुरुआत में कोरोना के बाद लगे लॉकडाउन ने तरबूज खेतों को भी लॉक कर दिया था। लाखों की फसल पानी के मोल बेची गई। संशय था कि खरीफ सत्र की समाप्ति के बाद तरबूज उत्पादक किसान इसकी खेती से किनारा कर लेंगे लेकिन एक बार फिर से तटीय इलाकों में तैयारी करते किसान यह बता रहे हैं कि नुकसान उठाया है लेकिन हौसला फिर भी बरकरार है।
कसडोल के आसपास के करीब दर्जन भर के ऊपर की संख्या में बसे 30 गांवों के लिए उद्यानिकी फसल हमेशा से मजबूत सहारा बनती रही है। इसमें तरबूज ऐसी फसल है जो सबसे ज्यादा आय देती है क्योंकि देश स्तर पर इसकी खरीदी की जाती है। इस बार भी विपरीत परिस्थितियों के बीच जिस तरह खेती की तैयारी की जा रही है वह रकबा करीब 25 एकड़ के आसपास पहुंच चुका है। किसान जिस गति से तैयारी कर रहे हैं उससे यह रकबा बढऩे का संकेत मिल रहा है। किसानों की संख्या भी बढ़ती नजर आ रही है।
महाराष्ट्र और दिल्ली। यह दो राज्य कसडोल में तैयार होने वाली तरबूज के सबसे बड़े उपभोक्ता राज्य हैं। कसडोल के तरबूज उत्पादक किसान तैयारी की खबरों का पहुंचाना शुरू करते हुए ऑर्डर का इंतजार कर रहे हैं। खेती के लिए आवश्यक आर्थिक मदद हमेशा से इन दोनों राज्यों से भी मिलती है और क्वालिटी का उत्पादन इन्हीं दोनों राज्यों को पहले दिया जाता है। पूछ परख और क्वालिटी सीड्स की साझा करने के बाद अब तरबूज उत्पादक किसान कुछ राहत महसूस करते दिखाई दे रहे हैं कि इन दोनों ने साथ नहीं छोड़ा है।
कोरोना काल के शुरुआती दिनों में सड़क मार्ग से परिवहन पर रोक के बाद तरबूज की खेती को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा था। इस बार स्थितियां भले ही सामान्य हो रही है लेकिन तरबूज उत्पादक किसान आने वाले दिनों में ऐसा खतरा मोल नहीं लेना चाहते। इसलिए खरीददार राज्यों की मदद से ऐसी ट्रांसपोर्ट कंपनियों की पहचान सुनिश्चित की जा रही है जो बाधा की स्थिति में भी उत्पादन गंतव्य तक पहुंचाने की सामथ्र्य रखते हैं।

स्थानीय बाजार पर भी ध्यान

बिलासपुर कोरबा रायपुर दुर्ग और राजनांदगांव हमेशा से कसडोल से निकलने वाले तरबूज की खरीदी करते रहे हैं। कोरोना काल में भी इन सभी ने साथ बनाए रखा। लिहाजा तरबूज उत्पादक किसान इन क्षेत्रों के अलावा दूसरे जिलों में संपर्क बढ़ा रहे हैं ताकि प्रतिकूल परिस्थितियों में साथ का दायरा बढ़ाया जा सके और नुकसान का आंकड़ा ना बढ़ सके। इसलिए नए जिलों में नए बाजार की भी खोज की जाने लगी है।

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