आपने अक्सर देखा होगा कि बच्चे बोतल से दूध पीते हैं। कुछ बच्चों में यह आदत लंबे समय तक रहती है। चिकित्सकों के मुताबिक इस आदत को एक समय लगभग 18 महीने के बाद छुड़वा देनी चाहिए। बच्चों को बोतल से दूध पिलाने की प्रक्रिया काफी आसान होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं इसके कई नुकसान भी होते हैं? हालांकि 6 महीने तक के बच्चों के लिए मां का दूध अधिक फायदेमंद माना जाता है। बोतल का दूध पीने से बच्चे की इम्युनिटी का विकास धीमा हो जाता है। कई मामलों में मां के दूध में कमी होने या फिर मां का दूध नहीं बनने के पर चिकित्सकों द्वारा बच्चों को बोतल या बाहर का दूध पीने की सलाह दी जाती है। लेकिन ऐसा सिर्फ कुछ ही मामलों में होता है। कुछ समय बाद बच्चों की बोतल से दूध पीने की आदत को छुड़वाकर उनमें कप से दूध पीने की आदत डलवा देनी चाहिए। आइये जानते हैं बोतल से दूध पीने के कुछ नुकसान और सावधानियों के बारे में।
1. डायरिया का खतरा – बोतल से दूध पिलाने में शिशु को डायरिया का खतरा होता है। बोतल का निप्पल जर्म्स को शरीर के अंदर पहुंचाने का सबसे बड़ा स्त्रोत है। यहां माइक्रोऑर्गैनिस्म चिपक सकते हैं और दूध पिलाते समय बच्चे के शरीर में प्रवेश कर सकते है। अगर शिशु पहले से ही किसी अन्य बीमारी का शिकार है या फिर अंडरवेट है तो ऐसे में डायरिया जानलेवा हो भी साबित हो सकता है। शिशुओं को सेहत के साथ कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहिए इसलिए दूध को बोतल से पिलाने को नजरंदाज करना चाहिए।
2. माइक्रोप्लास्टिक जोखिम- बेबी बॉटल यानी शिशु को दूध पिलाने वाली ये बोतल पॉलीप्रोलीन (Polyproline) से बनाई जाती है। बोतल का निप्पल जहां से बच्चा दूध पीता है वह इसी पॉलीप्रोलीन से बनी होती है, जो कि एक थर्मोप्लास्टिक पॉलिमर (Thermoplastic Polymer) है। साल 2020 की एक रिपोर्ट के मुताबिक इन बोतलों से शिशु को दूध पिलाने से माइक्रोप्लास्टिक एक्स्पोज़र (Microplastic Exposure) हो सकता है। खासकर जब इन बोतलों मे गरम दूध डाला जाए तो इनसे मिक्रोप्लास्टिक रिलीज़ ज़्यादा होता है। यह शिशु की सेहत के लिए बहुत नुकसानदायक हो सकता है। इससे शिशु में विकास की गति भी धीमी हो सकती है।
3. पोषण की कमी – मां के दूध मे बहुत सारे पोषण तत्व मौजूद होते हैं, जो शिशु के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए बहुत जरूरी होते हैं। मां के दूध से बच्चे को प्राकृतिक रूप से कैल्शियम, प्रोटीन, विटामिन, मैग्नेशियम और कार्बोहाइड्रेट आदि मिलते हैं। जबकि बोतल के दूध में ये सब मौजूद नहीं होते। इससे शिशु में पोषण की कमी हो सकती है। पोषण की कमी का शिकार होने से शिशु अन्य बीमारियों की चपेट के आ सकता है। शिशु की विकास प्रगति धीमी पड़ सकती है।
4. फेफड़ों में दिक्कत – बोतल से दूध पिलाने में चोकिंग का सबसे ज़्यादा खतरा होता है। कई बार बच्चे दूध पीते-पीते सो जाते हैं और दूध से भरी बोतल उनके मुंह में ही लगी रह जाती है। इससे बच्चे का दम घुट सकता है। इससे दूध बच्चे के गले में अटककर हवा को ब्लॉक कर सकता है। बच्चे को सांस लेने मे कठिनाई हो सकती है और फेफड़ों से संबंधित समस्याएं हो सकती है। इसलिए अगर बच्चे को बोतल से दूध पिला रही हैं तो इस बात का ध्यान रखें कि आप बच्चे के आस पास ही रहें, जिससे इस तरह की स्थिति न बन सके।
5. इम्यून सिस्टम पड़ सकता है स्लो – मां के दूध में इम्यूनिटी बूस्ट करने वाले पोषक तत्व पाए जाते हैं, जैसे कि विटामिन ए विटामिन सी प्रोटीन आदि। ये सभी न्यूट्रीएंट फॉर्मूला मिलकर यानी बॉटल से पिलाए जाने वाले दूध में नही मिलते। वहीं बोतल से पीये गए दूध में नुकसानदायक तत्व हो सकते हैं। इससे दूध में मौजूद न्यूट्रीएंट्स ठीक से अवशोषित नहीं हो पाते हैं। जिससे इम्यून सिस्टम कमजोर और धीमा पड़ सकता है।
बरतें यह सावधानियां – बच्चों की बोतल से दूध पीने की निर्धारित उम्र समाप्त हो जाने के बाद कोशिश करें कि उन्हें कप या फिर छोटी कटोरी में दूध पिलाने की आदत डालें।
बच्चे की दूध की बोतल भरने से पहले उसे पोछने की बजाय उसे अच्छी तरह से धोएं। ताकि किसी भी तरह के बैक्टीरिया बोतल के संपर्क में न आ सकें।
बोतल प्लास्टिक की होती है, इसलिए उसमें ज्यादा गर्म दूध डालने से बचें। ऐसा करना बच्चों की सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है।
बोतल गीली रहने पर उसमें जर्म्स और बैक्टीरिया पनपने की आशंका अधिक रहती है, इसलिए इसे धोने के बाद अच्छे से पोछ लें।
बच्चे द्वारा छोड़े हुए दूध को लंबे अंतराल के बाद न दें।
बच्चों की सेहत के मामले में रिस्क लेना महंगा पड़ सकता है। इसलिए कोशिश करें कि बच्चों की बोतल से दूध पीने की आदत को छुड़वाएं। इस लेख में दी गई सावधानियां जरूर बरतें।
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