July 2, 2025

इस उम्र के बाद ही बच्‍चों को मिलना चाहिए अलग कमरा

कुछ साल पहले तक बच्‍चे भी अपने पेरेंट्स के साथ ही उनके कमरे में सोते थे लेकिन बच्‍चों को अलग कमरा देने और सुलाने का चलन शुरू हो गया है। बच्‍चे और पेरेंट्स, दोनों की ही प्राइवेसी को बनाए रखने के लिए बच्‍चों को अलग कमरा दिया जाता है।

कुछ पेरेंट्स जल्‍दी ही अपने बच्‍चे को अलग कमरा दे देते हैं तो कुछ बच्‍चे के बड़ा होने का इंतजार करते हैं। हालांकि, पेरेंट्स को बच्‍चों के लिए अलग कमरा तैयार करने से पहले ये जान लेना चाहिए कि बच्‍चों को किस उम्र से अलग बेडरूम की जरूरत होती है।

विदेशों में बच्‍चों को आत्‍मनिर्भर बनाने के लिए अलग कमर में सुलाने का रिवाज है। हालांकि, ऐसा जरूरी नहीं है कि भारत में भी ऐसा ही। बच्‍चे को प्‍यार और सुरक्षा की जरूरत होती है और इसे पूरा करना पेरेंट्स की जिम्‍मेदारी है। कम शब्‍दों में कहें तो बच्‍चों को अलग कमरा देने की कोई उम्र नहीं होती है।

​किस उम्र में सुलाते हैं अकेले- विदेशों में बच्‍चों को अलग सुलाने की धारणा को अपनाना सही नहीं है। जब आपका बच्‍चा अलग कमरे के लिए तैयार हो लेकिन फिर भी वो आपके साथ सोने की इच्‍छा के संकेत दे रहा है, तो आपको उसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। अगर आप अपने बच्‍चे को उसकी मर्जी के बिना कमरे से बाहर निकाल देते हैं, तो इससे वो बुरा मान सकता है और असुरक्षित महसूस कर सकता है।

​साथ सोना है ज्‍यादा फायदेमंद – इस मामले में विशेषज्ञों का कहना है कि जो बच्‍चे लंबे समय तक अपने पेरेंट्स के साथ रहते हैं, उनमें सुरक्षा की भावना होती है और वो ज्‍यादा आत्‍मनिर्भर बनते हैं। आजकल कई लोग डर और इनसिक्‍योरिटी से जूझ रहे हैं, जिसकी जड़ उनके बचपन में ही छिपी है। स्‍कूल में किसी बच्‍चे के परेशान करने पर बच्‍चा अपने मां-बाप की गोद में सिर रखकर सुरक्षित महसूस करते हैं। इसलिए बच्‍चा जब तक खुद अलग कमरे में शिफ्ट करने के लिए न कहे, तब तक उसे सेपरेट रूम न दें।

पेरेंट्स को खुद ही ये एहसास हो जाता है कि कब उनके बच्‍चे को अलग कमरे की जरूरत है। एकदम से बच्‍चे को अलग कमरे में छोड़ने की बजाय उसे धीरे-धीरे इस बदलाव की आदत डालें।

स्‍टडी क्‍या कहती है- पीडियाट्रिक रेस्पिरेट्री रिव्‍यू में प्रकाशित स्‍टडी में खुलासा हुआ है कि पेरेंट्स के साथ सोने वाले शिशुओं में सडन इंफेंट डैथ सिंड्रोम का खतरा कम हो जाता है। नोत्र दामे यूनिवर्सिटी में एंथ्रापोलॉजी के प्रोफेसर मैकेना का कहना है कि अपने पेरेंट्स के साथ सोने से बच्‍चे का ब्रीदिंग पैटर्न हेल्‍दी रहता है।

अगर बच्‍चे की ब्रीदिंग धीमी हो जाती है, तो मां के द्वारा छोड़ी गई सीओ2 शिशु के लिए बैकअप का काम करती है। आसान शब्‍दों में कहें तो, सीओ2 के पास शिशु का नासिका क्षेत्र ज्‍यादा अच्‍छे से काम करता है।

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