July 1, 2025

खून में लिपिड का स्तर बढ़ने या घटने का क्या मतलब है? जानें इसके लक्षण, कारण और इलाज

डिसलिपिडेमिया यानी खून में लिपिड (ट्राइग्लीसेराइड और कोलेस्ट्रॉल जैसे फैट वाले पदार्थ) के स्तर का बहुत ज्यादा बढ़ जाना या बहुत कम हो जाना। इसमें खून में खराब कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लीसेराइड का स्तर बढ़ जाता है और अच्छे कोलेस्ट्रॉल का लेवल कम हो जाता है। डॉक्टर-बताते हैं कि कई लोग खान-पान की अच्छी आदत और जीवनशैली में बदलाव करके खून में लिपिड के लेवल को सामान्य कर देते हैं। लेकिन कुछ लोगों को इसके लिए इलाज की जरूरत पड़ती है। इस बीमारी का पता लगाने के लिए मरीज का ब्लड टेस्ट करवाया जाता है।

डिसलिपिडेमिया के लक्षण-ज्यादातर लोगों को डिसलिपिडेमिया के लक्षणों के बारे में पता नहीं चल पाता है। वे इस बात से अंजान होते हैं कि उनके खून में लिपिड का स्तर बढ़ या घट रहा है। डिसलिपिडेमिया कोरोनी आर्टरी डिजीज और पेरिफेरल आर्टरी डिजीज का कारण बन सकता है। इसके बाद सीएडी और पीएडी की वजह से हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में मरीज में कई लक्षण नजर आने लगते हैं।

– चलते हुए पैरों में दर्द या सूजन होना
– छाती में दर्द और सीने में जकड़न
– सांस लेने में तकलीफ होना
– गर्दन और पीठ में दर्द होना
– अनिद्रा और थकावट
– अपच की समस्या और चक्कर आना
– गर्दन की नसों में सूजन
– दिल घबराना और उल्टी आना
अगर आपको इनमें से कोई लक्षण नजर आता है, तो आपको तुरंत डॉक्टर से संपर्क करने की जरूरत होती है। अकसर डिसलिपिडेमिया होने पर लक्षणों का पता नहीं चल पाता है। ऐसे में यह समस्या कई दूसरी बीमारियों का रूप ले लेता है, तो इसके लक्षण दिखने शुरू होते हैं। इसलिए ये सिर्फ डिसलिपिडेमिया के ही नहीं बल्कि उससे होने वाली बीमारियों के भी लक्षण हो सकते हैं। ऐसे में डॉक्टर डिसलिपिडेमिया का पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं।

डिसलिपिडेमिया के कारण
डिसलिपिडेमिया होने का प्राथमिक कारण (आनुवांशिक हो सकता है। यानि अगर किसी के माता या पिता को यह समस्या होती है, तो उसे भी डिसलिपिडेमिया होने की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा मानसिक तनाव और खान-पान की गलत आदतें भी इसका कारण बन सकती है।

प्राथमिक कारण-किसी भी व्यक्ति में डिसलिपिडेमिया होने का प्राथमिक कारण आनुवांशिक हो सकता है। इसमें व्यक्ति को डिसलिपिडेमिया अपने माता या पिता से मिल सकता है। यह ज्यादातर युवाओं में विकसित होता है, इसकी वजह से खून में बैड कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाता है।

अन्य कारण-डिसलिपिडेमिया सिर्फ आनुवांशिक कारणों की वजह से नहीं होता है। यह कई अन्य ऐसे कारणों से भी हो सकता है। इसमें गलत जीवनशैली और खान-पान की गलत आदतें शामिल हो सकती हैं।

– एल्कोहल और धूम्रपान
– मानसिक तनाव
– मोटापा
– ट्रांस फैट और सैचुरेटेड फैट का अधिक सेवन
– टाइप 2 डायबिटीज
– लिवर की बीमारी
– पालीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम
– कुशिंग सिंड्रोम

इन लोगों को है डिसलिपिडेमिया का अधिक खतरा

  • बढ़ा हुआ वजन डिसलिपिडेमिया के खतरे को बढ़ा सकता है। ऐसे में आपको अपने वजन को कंट्रोल में रखने की जरूरत होती है।
  • जो लोग शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं होते हैं, उन्हें भी इसका अधिक खतरा होने की संभावना रहती है। इसके लिए आपको नियमित रूप से एक्सरसाइज जरूर करना चाहिए।
  • जो लोग अत्यधिक मात्रा में शराब, सिगरेट या तंबाकू का सेवन करते हैं, उन्हें इसका रिस्क ज्यादा होता है। ये चीजें संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं।
  • टाइप 2 डायबिटीज मरीजों को डिसलिपिडेमिया का खतरा सबसे अधिक होता है। ऐसे में आपको अपने ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल में रखने की जरूरत होती है।
  • किडनी या लीवर की पुरानी बीमारी वाले लोगों को भी डिसलिपिडिया का खतरा अधिक होता है।
  • जिनके घर में पहले से ही इसके मरीज हैं, वहां इसकी संभावना या रिस्क बढ़ जाता है।

डिसलिपिडेमिया का इलाज 
डिसलिपिडेमिया का इलाज खून में लिपिड के स्तर को ध्यान में रखकर किया जाता है। खून में लिपिड का स्तर कितना बढ़ा या कम हुआ है, इस पर इलाज निर्भर करता है। साथ ही इसका इलाज करने लिए पहले कारण का पता लगाया जाता है और फिर उसके कारण को दूर करने का प्रयास किया जाता है। पहले डॉक्टर उच्च कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल में करने के लिए आमतौर पर स्टैटिन के साथ इलाज करते हैं, लेकिन अगर इससे आराम नहीं मिलता तो खून में लिपिड के स्तर को सामान्य करने के लिए दवाइयां भी दी जाती है।

इतना ही नहीं दवाइयों के साथ-साथ डॉक्टर मरीज को उनके खान-पान और लाइफस्टाइल में भी बदलाव करने की सलाह देते हैं। ऐसे में उन्हें अनहेल्दी फैट, फुट फैट डेयरी प्रोडक्ट्स, रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट और फ्राइड फूड खाने की मनाही होती है। अगर वजन बढ़ा होता है, तो इसे एक्सरसाइज के जरिए कम करने की सलाह दी जाती है। लंबे समय तक बैठे न रहें। मानसिक तनाव को कम करने के लिए ज्यादा से ज्यादा आराम करने और पूरी नींद लेने की सलाह दी जाती है। साथ ही खूब पानी पीने को कहा जाता है।

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