बच्चों का मन बहुत ही चंचल होता है। अधिकांश बच्चों का मन हमेशा कोई न कोई खुराफात करने में रहता है। कई बार सीधे-साधे बच्चे भी बुरी संगत में आकर बिगड़ जाते हैं। यहां तक कि कुछ बच्चे बुरी संगत पाकर गाली देना तक सीख जाते हैं। बच्चों के गाली देने का सबसे ज्यादा असर उनके माता-पिता की परवरिश पर सवालिया निशान खड़े करते हैं। घर में आए मेहमानों पर इसका बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है। सभ्य समाज के लोग इस तरह की आदतों को कभी भी स्वीकार नहीं करते हैं।
अगर आपका भी बच्चा बुरी संगत में आकर गाली देना सीख रहा है तो ये आपके लिए और आपके बच्चे के लिए ठीक नहीं है। इसका नुकसान आपकी फैमिली को उठाना पड़ सकता है। यदि आप चाहते हैं कि आपका बच्चा गाली देना या असभ्य तरीके से बात करना न सीखे तो यहां हम आपको 5 उपाय बता रहे हैं जो निश्चितरूप से आपकी मदद करेंगे। आइए जानते हैं।
बच्चों में गाली देने की आदत को कैसे दूर करें?
1. पहली बार में ही टोकें
अक्सर आपको पता ही नहीं होता है कि आपका बच्चा कैसे-कैसे लोगों के संगत में हैं। कई बार बच्चे आपके सामने गाली नहीं दे रहे होते हैं मगर आपके पीठ पीछे जरूर असभ्य भाषा का इस्तेमाल कर रहे होते हैं। मगर बच्चों की ऐसी आदत लंबे समय तक छिपती नहीं है। अगर आपका बच्चा गलती से भी गाली का प्रयोग करता है तो उसे वहीं तुरंत टोकें ताकि वह दोबारा ऐसे शब्दों का प्रयोग न करे।
2. बच्चे और उसके दोस्तों पर नजर रखें
कुछ माता-पिता न तो अपने बच्चे पर नजर रख पते हैं और न ही उनके दोस्तों पर, जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए। अगर आप अपने बच्चों की अच्छी तरह से परवरिश करना चाहते हैं तो उनपर नजर रखें। हालांकि, नजर रखने का मतलब यह कतई नहीं है कि आप उनकी जासूसी करें। बच्चे से उसके बारे में और उसके दोस्तों के बारे में जरूर बात करें साथ ही उन्हें अच्छे दोस्त और बुरे दोस्तों में फर्क को समझाएं।
3. बच्चे की पढ़ाई पर ध्यान दें
आपका बच्चा पढ़ने में कैसा है, उसके मार्क्स कैसे आ रहे हैं, शिक्षकों का उसके प्रति क्या भाव है जैसी बातों को एक पैरेंट्स को जरूर पता होना चाहिए। कुछ मिलाकर माता-पिता को उसकी पढ़ाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए। ताकि उसका मन पढ़ाई में लगे और वो बुरी आदतों और संगतों से दूर रहें। अगर आपका बच्चा पढ़ाई में अच्छा होगा तो निश्चितरूप से उसके दोस्त भी कम होंगे और अच्छे होंगे।
4. नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाएं
बचपन से ही बच्चों को नैतिकता का पाठ जरूर पढ़ाना चाहिए। बच्चों को गीता, रामाणय और वेदों से जुड़ी कहानियां बतानी चाहिए। उन्हें उन महापुरुषों की कहानी सुनानी चाहिए, जिन्होंने देश के लिए और समाज के लिए कुछ अलग किया हो। नैतिकता से बच्चों में गंभीरता आती है और वे किसी महान व्यक्तित्व की तरह जीवन जीते हैं। ऐसे बच्चे कभी बुरी संगत में नहीं पड़ते हैं बल्कि वे आगे चलकर अपने माता-पिता का नाम करते हैं।
5. अच्छे और बुरे व्यक्तियों के बीच का फर्क समझाएं
अच्छे इंसान कौन होते हैं और बुरे इंसान कौन होते हैं, इस प्रकार की समझ बच्चों विकसित नहीं होती है। ये उन्हें सिखाना पड़ता है। और ये काम माता-पिता का होता है। पेरेंट्स को अपने बच्चों को अच्छी सीख देने के साथ अच्छे और बुरे इंसानों के बीच फर्क को भी बताना चाहिए, ताकि वे ऐसी संगत में न पड़ें जिससे उनका भविष्य और आपकी छवि खराब हो।
निष्कर्ष
बच्चों को संस्कारी बनाने के लिए कोई नुस्खा नहीं है। इसके लिए आपको शुरुआत से ही उनकी देखभाल करनी पड़ती है। ये एक दिन करने से नहीं होता बल्कि बच्चों को एक बेहतर और सफल इंसान बनाने के लिए उन्हें मूल्यों पर आधारित शिक्षा देनी पड़ती है। उनमें अच्छे संस्कार डालने के लिए उन्हें अच्छी सीख देनी पड़ती है।
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