पायनियर संवाददाता कोण्डागांव
छत्तीसगढ़ प्रदेश का पहला बजट तकरीबन 5000 हजार करोड़ था, अब प्रदेश का बजट लगभग 100000 करोड़ पहुंच गया है। लेकिन बस्तर वही के वही खड़ा है। वैसे तो केन्द्र तथा राज्य सरकार की अनेकों योजनाएं बस्तर में संचालित है, लेकिन धरातल की तस्वीरे कुछ और ही बयां करती है। कोण्डागांव जिला अंतर्गत थाना बयानार क्षेत्र का एक छोटा सा गांव कोहकड़ी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहा है। इस गांव में शासकीय संसाधनों की बात करें तो सडक, पानी, बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं ग्रामीणों से कोसों दूर है। लेकिन इस गांव की आम जनता आज भी स्थानीय प्रशासन व क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों से पूरी उम्मीद लगाए रखे हुए हैं। कि उनके क्षेत्र में देर सवेर ही सही विकास की लौ जरूर जलेगी।
इन्ही आशाओं के साथ कोहकाड़ी के ग्रामीणों ने लगातार विधायक स्तर के जनप्रतिनिधियों से लेकर जिला स्तर के अधिकारियों तक पहुंच व्यथा सुनाई हैं। लेकिन हर बार की तरह उन्हें विकास की बजाय विकास के वादे ही मिले हैं। विकास खण्ड कोण्डागांव अंतर्गत मुख्यालय से लगभग 70 किमी दूर ग्राम पंचायत छोटेउसरी के आश्रित ग्राम कोहकड़ी में आज तक विकास का लौ नहीं जल पाया हैं। इस गांव में पायनियर की टीम पहुंची तो ग्रामीणों ने अपनी व्यथा सुनाई, जिसके अनुसार बीमारी के साथ-साथ परिस्थितियों से भी लडऩा होता हैं। क्योंकि पंचायत मुख्यालय से गांव तक पहुंचने के लिए कोई सडक ही नहीं हैं। यहां केवल पगडंडी से होकर ही पहुंचा जा सकता हैं। ऐसे में लगभग 7 किमी की दूरी तक गांव के छोटे हो या बुजुर्ग या फिर गर्भवती महिला सभी को डोला के ही सहारे एम्बुलेंस तक और फिर एम्बुलेंस से नजदिकी अस्पताल पहुंचाया जाता हैं।
कोहकड़ी में आजादी के 70 बरस बाद भी गांव के लोग साफ पेयजल के लिए तरस रहे हैं। कोहकाड़ी के लाऊड़पारा की बात करे तो, यहां के वाशिंदों के लिए सरकार आज तक एक हैंडपंप भी नहीं खोद पाई हैं। ऐसे में पूरा लाऊड़पारा अपने खेत में बने (बिहरी) झरिया के पानी से प्यास बुझाता हैं। गांव के पंच मणिराम कोर्राम के अनुसार, छोटेउसरी पंचायत का आश्रित ग्राम कोहकड़ी तक पहुंचने के लिए जिला मुख्यालय से चेमा तक डामर की पक्की सडक हैं।
तो वहीं चेमा से छोटेउसरी तक सीसी सडक भी बनाई गई है। लेकिन पंचायत मुख्यालय से ना जाने क्यों उनके गांव तक लगभग 7 किमी पहुंचने के लिए सभी शासकीय प्रसानिक तंत्र दम तोड़ देता हैं। उनके गांव में 26 मकान है, जिसमें 370 लोगों का निवास हैं। इन 370 लोगों तक बुनियादी सभी सुविधाएं पहुंचने से पहले दम तोड़ चुकी हैं।
गांव में है 4 बिहरी, गर्मी में कीचड़-युक्त पानी से बुझती है प्यास
गांव में चार बिरही (झरिया) हैं। इन चार बिरही में धोडकी नाला में एक, चिहरा नाला में एक, झरिया टट में एक और एक झोरकी नाम से ग्रामीणों ने अपनी प्यास बुझाने के लिए निर्माण किया हैं। ग्रामीणों ने दावा किया है कि, चोरों झरियां बारिश के दौरान पूरी तरह से डुब कर जलमग्न हो जाता है। इस कारण बारिश में खेत में जमा पानी से प्यास बुझाई जाती हैं। तो वहीं गर्मी के मौसम में मात्र एक या दो बिहरी में पानी रहता हैं। जिसमें या तो पानी पीने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, या फिर दैनिक अन्य उपयोग में।
पूरे गांव का सबसे महंगा वाहन आज भी साइकिल
गांव के किसी भी ग्रामीण ने अपने गांव में आज तक कोई एम्बुलेंस नहीं देखा हैं, देखते भी कैसे यहां तक पहुंचने के लिए सडक ही नहीं हैं। ग्रामीणों की माने तो गांव में सबसे महंगा वाहन साइकिल है। गांव तक पक्की सडक और नदी नाला पार करने के लिए पुल नहीं होने से गांव के किसी भी व्यक्ति ने चाह कर भी मोटर साइकिल तक नहीं खरीदा। अब ग्रामीण पंचायत मुख्यालय हो या जिला मुख्यालय गांव के सबसे महंगे वाहन साइकिल से ही सफर किया करते हैं।
कई बार लिखित आवेदन देकर समस्याओं
से कराया अवगत, किसी ने नहीं सुनी गुहार
कोहकाड़ी गांव के पंच समेत स्थानीय महिला, पुरूष व बुजूर्गों ने कहा कि, उनके माध्यम से कई बार क्षेत्र के विधायक को लिखित आवेदन दिया गया हैं। और बुनियादी समस्याओं से अवगत भी कराया गया है, लगातार हस्ताक्षर करके आवेदन देने के बाद भी आज तक किसी एक समस्या का भी समाधान नहीं हो पाया हैं, और हमेशा निराशा ही मिली है।
नाला के पार है स्कूल, बरसात हुआ तो बच्चों की लम्बी छुट्टी तय
विकास से कोसों दूर छोटेउसरी के आश्रित ग्राम कोहकाड़ी के ग्रामीणों को पता है कि, उनके गांव में विकास की लौ शिक्षा के माध्यम से ही जलेगी। शिक्षा की अलाप जलाने गांव के लगभग 18 बच्चों को प्राथमिक शिक्षा के लिए नाला के पार स्कूल जाना होता हैं। नाला पार शिक्षा के मंदिर में पहुंचने से पहले बच्चों को जिस नाला को पार करना होता है, वह बारिश के दौरान लगभग 3 माह पूरी तरह से लबालब होता हैं। ऐसे में बारिश के आते ही गांव के बच्चों की स्कूल से लम्बी छुट्टी हो जाती हैं।
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