सोमवार को दिल्ली में वोरा ने ली अंतिम सांसे, जन्मदिन के अगले ही दिन चल बसे
पायनियर संवाददाता-राजनांदगांव
सियासी दांवपेंच के लिए जाने जाने वाले राजनांदगांव का प्रतिनिधित्व कर चुके कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व राज्यपाल और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा का सोमवार को दिल्ली में निधन हो गया। एक वक्त था जब इस कद्दावर नेता की कर्मभूमि राजनांदगांव रही। वे एक साल तक यहां से सांसद रहे। हालांकि इसके बाद हुए संसदीय चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने आश्चर्यजनक रुप से उनके खिलाफ जीत दर्ज की थी और केंद्र में मंत्री बने। इस अप्रत्याशित उलटफेर के बाद वोरा दोबारा राजनांदगांव नहीं लौटे।
सत्तर के दशक से केंद्रीय राजनीति में सक्रिय मोतीलाल वोरा का मध्य भारत के प्रभावशाली नेताओं में शुमार थे। दो बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री और उत्तरप्रदेश के राज्यपाल रह चुके वोरा पहली बार लोकसभा के लिए 1998 में राजनांदगांव से ही निर्वाचित हुए थे। उन्होंने भाजपा के अशोक शर्मा को 52 हजार से अधिक मतों से हराया था। एक वर्ष बाद 1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के डॉ. रमन सिंह ने उन्हें 26 हजार 725 मतों से हरा दिया था। इसके बाद उन्होंने राज्यसभा का रुख किया।
कद्दावर नेता माने जाने वाले मोतीलाल वोरा के लिए वर्ष 1999 का लोकसभा चुनाव जीतना किसी तरह से मुश्किल दिखाई नहीं दे रहा था। उस दौरान कवर्धा से विधानसभा चुनाव हार चुके डॉ. रमन सिंह को उनके खिलाफ भाजपा ने मैदान में उतारा था। इतनी बड़ी छवि के सामने भाजपा फीकी लग रही थी। वोरा की लोकप्रियता का आलम यह था कि यहां भाजपा के उस दौर के सबसे बड़े स्टार प्रचारक पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्व. अटल बिहारी बाजपेयी ने डॉ. रमन सिंह के पक्ष में जनसभा की थी।
इसका असर भी चुनाव के नतीजों में देखने को मिला। डॉ. रमन सिंह ने परिणाम बदल दिए थे। वे जीत चुके थे और वोरा को हार का सामना करना पड़ा था। बताया जाता है कि उस दौरान डॉ. रमन की जीत से ज्यादा चर्चे मोतीलाल वोरा की हार के थे। वोरा ही थे जिनकी हार ने डॉ.रमन सिंह को केंद्र में ला दिया। वे एनडीए की केंद्र सरकार में मंत्री बने और इसके बाद प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और वर्ष 2003 में विधानसभा चुनावों में भाजपा को जीत मिलने के बाद मुख्यमंत्री बने।
केंद्र बिंदु रहे
दुर्ग संभाग के राजनेताओं के लिए वोरा केंद्र बिंदु रहे। वे लंबे समय तक गांधी परिवार के सबसे करीबी रहे। रिकॉर्ड 18 वर्ष तक राष्ट्रीय कांग्रेस का कोष वे ही संभालते रहे। इस बीच राजनांदगांव के नेताओं के लिए वोरा दिल्ली में हमेशा मौजूद रहे। न सिर्फ कांग्रेसी नेताओं बल्कि भाजपा नेताओं का भी उनसे लगाव रहा। मिलनसार और बेहद साधारण व्यवहार ने उनकी ओर सभी को आकर्षित किया। वोरा के निधन पर कांग्रेस ने तीन दिन का शोक घोषित किया है। वहीं कांग्रेसी नेताओं ने उनके निधन पर गहरी संवेदना प्रकट की है।
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