June 14, 2025

कलेक्टर ने जांच की बात तो कही पर अब तक जारी नहीं हुआ आदेश मेडिकल कॉलेज प्रबंधन को जांच में क्यों मिल रही रियायत !

प्रशासनिक जांच के अलावा पुलिसिया जांच भी अब तक शुरु नहीं हो सकी, ऑक्सीजन सप्लाई एजेंसी का टेंडर रद्द करने के बाद आगे की प्रक्रिया भी अधर में
विभागीय बैठक में क्या हुआ.. जानकारी देने से बच रहे अधीक्षक बेक

पायनियर संवाददाता-राजनांदगांव

ऑक्सीजन सप्लाई एजेंसी पर ठीकरा फुटने के बाद अब मेडिकल अस्पताल प्रबंधन निशाने पर है। मृतक की बेटियां पहले ही इन पर कड़ी कार्रवाई के लिए शासन-प्रशासन तक शिकायत कर चुकी हैं। खैरागढ़ निवासी 55 वर्षीय व्यक्ति की मौत के बाद अस्पताल की सुविधाओं और प्रबंधन को लेकर कई सवाल खड़े हो गए हैं। इस मामले को लेकर शासन – प्रशासन ने जांच का ऐलान कर रखा है लेकिन इन आदेश को लेकर भी हील-हवाला ही चल रहा है। दूसरी ओर पुलिस अधीक्षक भी जांच जारी होने की बात कह रहे हैं जबकि उनके मातहत अधिकारी अब तक आदेश न मिलने का खुलासा कर रहे हैं।
मृतक की पुत्री की शिकायत पर कलेक्टर ने मेडिकल कॉलेज में हुई मौत के जिम्मेदारों को लेकर जांच के आदेश लगभग एक सप्ताह पूर्व दिए थे। इस आदेश के बाद स्थिति यह है कि जांच अधिकारी बनाए गए अपर कलेक्टर सीएल मार्कंडे को अब तक न ही जांच के आदेश मिले है और न ही शिकायतकर्ता द्वारा दी गई शिकायत की प्रति उन्हें मिल पाई है। नतीजतन अब तक जांच शुरु भी नहीं हो सकी है। अपर कलेक्टर सीएल मार्कंडे ने पायनियर से बातचीत में बताया कि उन्हें अब तक जांच से संबंधित किसी तरह का आदेश या दस्तावेज उपलब्ध नहीं हुए हैं। आश्चर्य है कि एक ही ईमारत के भीतर कलेक्टर के चेंबर से अपर कलेक्टर के चेंबर तक एक हफ्ते के बाद भी आदेश व अन्य कागजी दस्तावेज नहीं पहुंच पाएं हैं। यह सिस्टम की खामियां तो उजागर करने के लिए काफी है ही इसके अलावा शंका यह भी है कि क्या जिला प्रशासन भी दोषी मेडिकल कॉलेज प्रबंधन को इस मामले में बचाने की कोशिश कर रहा है। वो भी तब जब एक परिवार का मुखिया लचर व्यवस्था की बली चढ़ चुका है और आम लोगों के मन में कोविड अस्पताल में चल रही अव्यवस्था को लेकर भय निर्मित हो चुका है।
दूसरी ओर शिकायत पर पुलिसिया जांच को लेकर पुलिस अधीक्षक डी श्रवण ने कहा कि, मृतक की बेटियों की शिकायत पर एसडीओपी जांच कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस संबंध में कलेक्टर द्वारा गठित मेडिकल टीम भी जांच करेगी जिसके बाद प्राप्त तथ्यों के आधार पर आगे की कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी। पुलिस अधीक्षक के इस बयान के विपरित एसडीओपी जीसी पति ने पुष्टी करते हुए बताया कि उन्हें जांच से संबंधित किसी तरह के आदेश या दस्तावेज अब तक नहीं मिले हैं। समझा जा सकता है कि जिला स्तर पर घोषित दो जांच एक हफ्ते बीतने के बाद भी शुरु नहीं हो सकी है। जहां जिला अधिकारी जांच शुरु होने की बात कह रहे हैं तो उनके मातहत अधिकारी ही जांच से संबंधित आदेश तक प्राप्त न होने की बात कह रहे हैं।

लचर सिस्टम की भेंट चढ़ जाएगी जांच!

इस खुलासे के बाद मेडिकल कॉलेज प्रबंधन को लेकर चल रही जांच पर होने वाली कार्रवाई की संभावनाएं खत्म होती दिख रही है। न सिर्फ प्रबंधन के जिम्मेदार खुद को बचाने दूसरे जिम्मेदार पर ही पूरी गलती थोप रहे हैं बल्कि प्रशासन भी उन्हें बचाने की कोशिशों में लगे हैं। दूसरी ओर इस मामले में स्वास्थ्य विभाग ने भी मेडिकल से सवाल-जवाब किए हैं। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव भी लापरवाही के संबंध में प्रबंधन को दोषी बता चुके हैं। उन्होंने कहा था कि एक व्यक्ति की इस तरह की मौत के लिए सीधे तौर पर प्रबंधन और अस्पताल अधीक्षक जिम्मेदार हैं जिनके खिलाफ जांच के बाद कार्रवाई होगी और किसी भी दोषी का बख्शा नहीं जाएगा। स्वास्थ्य मंत्री के इस आश्वासन के बावजूद कार्रवाई को लेकर कई आशंकाएं हैं और इसका जिम्मेदार शासन – प्रशासन ही नजऱ आ रहा है। अधिकारी वर्ग अपने ही बिरादरी वालों को बचाते नजऱ आ रहे हैं।

मौत के डर से अस्पताल जाने से बच रहे लोग

आम लोग टेस्ट कराने से हिचक रहे हैं क्यूंकि उन्हें डर है कि कहीं उन्हें कोविड अस्पताल न भेज दिया जाए। ऐसे में बेहद जरुरी है कि शासन इस मामले में आवश्यक कार्रवाई कर प्रबंधन को दुरुस्त करे। दूसरी ओर कोविड अस्पताल में हुई मौत को लेकर लोग मुखर हैं और वे भी सख्त कार्रवाई के पक्षधर हैं। 15 नवंबर को हुई खैरागढ़ निवासी व्यक्ति की मौत ने कोविड अस्पताल की सारी पोल खोल कर रख दी। यहां लचर प्रबंधन और मॉनिटरिंग में खामी ही वह बड़ी वजह बनी जिसके चलते एक व्यक्ति की अकालमृत्यु होने के बाद से संक्रमित व्यक्ति घर में ही आईसोलेट होने के पक्षधर हैं। अस्पताल से ठीक होकर लौट चुके लोग भी वहां के अनुभव साझा कर रहे हैं। ये लोग बताते हैं कि वहां घंटे चीखने-चिल्लाने पर भी किसी तरह की मदद नहीं मिलती। चार दिवारी के भीतर कैद मरीज कई बार दर्द से तो कई बार दूसरी समस्याओं को लेकर बड़ी परेशानियां सामना करता रहता है बावजूद उसे देखने वाला कोई नहीं होता। मेडिकल स्टॉफ अपने तय पर ही वार्ड में आते हैं और इसके बाद वे अपना लंबे समय गायब रहते हैं। चिकित्सक की जरुरत होने पर हमेशा यही जवाब आता है कि डॉक्टर राऊंड में हैं जबकि वार्ड में डॉक्टर आते ही नहीं। ऐसी अव्यवस्थाओं का हवाला देते हुए पूर्व में संक्रमित रहे लोग दूसरों को कोविड अस्पताल न ही जाने की सलाह देते हैं।

क्या कहते हैं कानूनी जानकार

बिलासपुर हाईकोर्ट के अधिवक्ता देवेंद्र खोब्रागढ़े ने इस मामले में कानूनी कार्रवाई की जानकारी सामने रखी है। उन्होंने बताया कि मेडिकल कॉलेज में निर्मित कोविड अस्पताल में एक व्यक्ति की लापरवाही के चलते मौत होना गंभीर मसला है। इस प्रकरण में प्रबंधन पर विभिन्न धाराओं के तहत मामजा दर्ज किया जा सकता है जिसमें अलग-अलग दंड, जुर्माना का प्रावधान है। उन्होंने बताया कि इस संबंध में भादंवि की धारा 336, 337, 338, 304ए के तहत मामला कायम किया जा सकता है। धारा 336, 337 की धाराओं के तहत दूसरों के जीवन या व्यक्तिगत सुरक्षा को ख़तरा पहुँचाने वाला कार्य कारित करने पर तीन माह तक के कारावास व जुर्माने का प्रावधान है। वहीं धारा 337 के तहत 6 माह तक कारावास या जुर्माना का प्रावधान है। वहीं धारा 338 में अधिकतम दो वर्ष का कारवास और जुर्माना लगाया जा सकता है। 304 ए के तहत भी दो साल कारावास और जुर्माना प्रावधान है।

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