तिल्दा-नेवरा। मुसीबत देखकर मुख मत मोड़ो। बल्कि उनका साथ दो। दुख का सहभागी बनो। दुख में किसी का साथ देना हमारा कर्तव्य होना चाहिए। यह वेद सीखाता है। ज्ञान प्राप्त करना है तो सत्संग सुनिए यह भी भाग्य वालों को ही मिलता है। भगवान से कुछ मांगना है तो सुख शांति मांगों। न कि धन दौलत। भगवान से पहले दुख मांगों लेकिन हम सुख मांगते हैं। उक्त बातें ग्राम मढ़ी के नवदुर्गा स्थल ठाकुरदेव चौक में निर्मलकर परिवार व मोहल्ले वासियों की ओर से आयोजित हो रही संगीतमय श्रीमद् भागवत महापुराण सप्ताह ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन गुरूवार को कथावाचक भागवत भूषण पंडित रमाकांत दुबे खौना वाले ने कही। कथा प्रसंग में कथा व्यास ने व्यास पीठ से व्यास जन्म, परीक्षित जन्म, चौबीस अवतार और वाराह कथा का वर्णन किया। व्यास गद्दी से भगवताचार्य ने भगवान के चौबीस अवतारों की रोचक एवं सारगर्भित कथा सुनाते हुए कहा कि यह संसार भगवान का एक सुंदर बगीचा है। यहां चौरासी लाख योनियों के रूप में भिन्न- भिन्न प्रकार के फूल खिले हुए हैं। जब-जब कोई अपने गलत कर्मो द्वारा इस संसार रूपी भगवान के बगीचे को नुकसान पहुंचाने की चेष्टा करता है तब-तब भगवान इस धरा धाम पर अवतार लेकर सज्जनों का उद्धार और दुर्जनों का संघार किया करते हैं। उन्होंने कहा कि, जीव हत्या पाप है और इस पाप का फल भोगना पड़ता है। पैसा है तब-तक सब साथ देते है। ये रिश्तेदार भी पेड़ की फूल की तरह होते है। जिस प्रकार जब पेड़ में फूल लगा रहता है तो उसके पास सभी जाते है लेकिन फूल नहीं लगती तो कोई उसके पास नहीं जाते है। उसी प्रकार रिश्तेदार भी मतलब में साथ देते है। यह संसार झूठ का संसार है। यह संसार सपना है, यह शरीर नाशवान है। आज भाई-भाई में झगड़ा हो रहा है यही महाभारत है और झगड़ा का मूल कारण पैसा है। पैसा के पीछे पागल बनना बेकार है। पागल बनना है तो कृष्ण के प्रति बनो।तुलसी के पत्ता के लिए तैतीस करोड़ देवता झगड़ते है। लेकिन हम इनका इज्ज़त नहीं करते है। युद्ध में गुरु द्रोण के मारे जाने से क्रोधित होकर उनके पुत्र अश्वत्थामा ने पांडवों को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया। ब्रह्मास्त्र लगने से अभिमन्यु की गर्भवती पत्नी उत्तरा के गर्भ से परीक्षित का जन्म हुआ। परीक्षित जब बड़े हुए नाती पोतों से भरा पूरा परिवार था। सुख वैभव से समृद्ध राज्य था। वह जब 60 वर्ष के थे। एक दिन वह क्रमिक मुनि से मिलने उनके आश्रम गए। उन्होंने आवाज लगाई, लेकिन तप में लीन होने के कारण मुनि ने कोई उत्तर नहीं दिया। राजा परीक्षित स्वयं का अपमान मानकर निकट मृत पड़े सर्प को क्रमिक मुनि के गले में डाल कर चले गए। अपने पिता के गले में मृत सर्प को देख मुनि के पुत्र ने श्राप दे दिया कि जिस किसी ने भी मेरे पिता के गले में मृत सर्प डाला है, उसकी मृत्यु सात दिनों के अंदर सांप के डसने से हो जाएगी। ऐसा ज्ञात होने पर राजा परीक्षित ने विद्वानों को अपने दरबार में बुलाया और उनसे राय मांगी। उन्होंने आगे कहा कि,भगवान के मुख से निकली कथा ही भागवत कथा है। इस भागवत ज्ञान रूपी गंगा में जो डुबकी लगाता है वह इस भव सागर से तर जाता है। उन्होंने आगे कहा कि, भगवान के चरणों से निकली गंगा के पास तो लोगों को स्वयं चलकर जाना पड़ता है, लेकिन भगवान के मुख से निकली भागवत कथा का कहीं भी श्रवण किया जा सकता है। इसके श्रवण करने से व्यक्ति इस संसारिक रूपी जीवन के बंधनों से मुक्त हो जाता है और वह जितना ज्यादा इसकी ओर आकर्षित होता जाता है उसे उतना ही पुण्य फल प्राप्त होता है। भागवत कथा को शरीर से नहीं पूरे मन से सुनना चाहिए तभी इसका फल प्राप्त होता है। भागवत प्रेम में जो विलक्षण रस है वह ज्ञान में नहीं है। उन्होंने बताया कि जब-जब धरती पर पापियों का अत्याचार बढ़ता है, तब-तब भगवान विष्णु ने अवतार लेकर पृथ्वी को पापियों के बोझ से भारमुक्त किया है। हिरण्याक्ष राक्षस जब संपूर्ण पृथ्वी का हरण करके पाताल लोक में ले गया, तब भगवान ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष राक्षस का संहार किया और पृथ्वी को पाताल लोक से बाहर निकाला। कथा के बीच-बीच में मधुर भजनों पर श्रद्घालु झूम उठे। 15 से 23 फरवरी तक आयोजित हो रही भागवत कथा का रसपान करने गांव सहित आसपास गांव से भी बड़ी संख्या में रसिक श्रोतागण पहुंच रहे है। कथा का समय दोपहर 01 से शाम 05 बजे तक है। परायणकर्ता पंडित कुलेश्वर दुबे धमतरी वाले हैं।
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