September 15, 2025

विभागीय संरक्षण में पनपी खाद की कालाबाजारी, कृषि विभाग से जारी रिलीज ऑर्डर के चलते ही कारोबारियों को मिली दोगुनी खाद और संग्रहण केंद्रों में कमी बनी रही

कलेक्टर ने जांच के आदेश दिए, संयुक्त कलेक्टर वीरेंद्र सिंह ने अधिकारियों से जवाब मांगा

राजनांदगांव@thethinkmedia.com

खाद की हेरफेर के मामले में जिला मार्कफेड अधिकारी (डीएमओ) और कृषि उप संचालक गोविंद सिंह ध्रुव पर कार्रवाई की तलवार लटक रही है। रासायनिक उर्वरकों की अफरा-तफरी के मामले में इन दोनों ही अधिकारियों की भूमिका संदेह के दायरे में है। हालांकि मार्कफेड का पक्ष स्पष्ट है। उनकी ओर से कहा गया है कि खाद अलॉट करना कृषि विभाग का कार्य है। इससे समझा जा सकता है कि इस पूरे खेल में कृषि विभाग की क्या भूमिका है। आरोप है कि तय तादाद से अधिक खाद कारोबारियों के हवाले की गई जिसके चलते सोसायटियों में खाद की कमी बनी रही। इसका फायदा कारोबारियों ने उठाया। अब इस मामले में संयुक्त कलेक्टर विरेंद्र सिंह जांच कर रहे हैं। दोनों अधिकारियों से जवाब मांगा गया है।
कलेक्टर ने रासायनिक उर्वरकों की कालाबाजारी, संग्रहण केंद्रों में इसकी कमी और अधिकारियों की भूमिका को लेकर बड़ा एक्शन लिया है। सप्ताह भर पहले ही कलेक्टर के ही आदेश पर रेलवे स्टेशन पहुंची तकरीबन 8 करोड़ की 2280 मिट्रिक टन यूरिया खाद की रेक प्रशासन ने जब्त कर ली थी। यह खाद कारोबारियों तक पहुंचने वाली थी लेकिन इससे पहले ही इसे जब्त कर संग्रहण केंद्रों के लिए रवाना कर दिया गया था। यह खाद उत्तरप्रदेश फूलपुर से लाई गई थी।
इस कार्रवाई के बाद दोनों ही अधिकारियों की भूमिका पर संदेह बढ़ गया। प्रारंभिक जांच में सामने आया कि अब तक कारोबारियों को रासायनिक उर्वरक की तय तादाद से दोगुनी खाद दी जा चुकी है। इसके चलते संग्रहण केंद्रों में यूरिया की भारी कमी हो गई। बाज़ार में खाद की कालाबाजारी शुरु हो गई और इसे दोगुने दाम पर बेचा जाता रहा। यहीं से मार्कफेड अफसर और कृषि उपसंचालक की भूमिका की जांच की दिशा तय हो गई थी।

कृषि उपसंचालक ने आबंटित की खाद

मार्कफेड का काम खाद की खेप को गोदाम और गोदाम से संग्रहण केंद्रों तक पहुंचाना है। जबकि कितनी मात्रा में खाद कहां जाएगी और कारोबारियों को कितनी खाद मिलेगी इसका निर्धारण कृषि विभाग द्वारा किया जाता है। उर्वरक के वितरण पर नियंत्रण के तहत 60-40 का रेश्यो निर्धारित है। इसके तहत कुल निर्धारित कोटे से 60 प्रतिशत खाद संग्रहण केंद्रों में और 40 प्रतिशत कारोबारियों को दिया जाना होता है। कृषि उपसंचालक ही डिमांड के हिसाब से रिलीज ऑर्डर जारी करते हैं। इस तौर पर खाद की कालाबाजारी में कृषि उपसंचालक की भूमिका ज्यादा संदिग्ध है। क्यूंकि कृषि उपसंचालक द्वारा जारी रिलीज ऑर्डर के तहत ही कारोबारियों को खाद मिलती रही।

बढ़ती मांग के बीच हुई कालाबाजारी

अगस्त माह की शुरुआत के साथ ही फसलों को यूरिया की जरुरत पड़ती है। फसल के बड़े होने और पानी गिरने के दौरान यूरिया का छिड़काव जरुरी हो जाता है। लेकिन इसी बीच जिले के किसान खाद की कमी से जुझते रहे। कालाबाजारी की खबरें भी सामने आई और प्रशासनिक छापामार कार्रवाई ने यह साबित भी किया। जिले के कई हिस्सों में अधिक दाम में खाद बेचे जाने के मामले में कार्रवाई की गई। इस बीच भी संग्रहण केंद्रों में खाद की कमी बनी रही।

दूसरे संस्थानों से हो रहा उठाव

खाद की कालाबाजारी की रोकथाम को लेकर एक बड़े अभियान की दरकार है। ऊपर से लेकर आखिरी पायदान तक इस कारोबार की आड़ में मुनाफा वसूली को गोरखधंधा चल रहा है। मैदानी अमला जो कृषि केंद्रों की जांच का जिम्मेदार है उसकी भूमिका पर भी सवाल खड़े होते हैं। दरअसल, कृषि केंद्रों और खाद विक्रेता बिना बिल के खाद बेच रहे हैं ऐसी शिकायतें हैं। इसके अलावा इन दुकानों में खरीदी बिक्री से लेकर स्टॉक पंजी की जांच के साथ ही खाद विक्रेताओं को जारी लायसेंस और प्रस्तुत खाद खरीदी ोित केंद्र की जांच नहीं हो रही है। खाद विक्रेता को लाईसेंस लेने के दौरान ही उस संस्थान की जानकारी देनी होती है जहां से वह खाद की खरीदी करेगा, लेकिन विक्रेता किन्हीं और संस्थानों से धान का उठाव करते हैं। इससे कालाबाजारी बढ़ रही है। यही नहीं पर्चेस ऑन सेल्स के तहत खरीददारों के थम्ब इंप्रेशन लिए जाने चाहिए जो कि नहीं लिए जा रहे हैं।

अब भी जारी है कालाबाजारी

जिले में दो हजार मीट्रिक टन यूरिया की खेप सीधे सोसायटियों में पहुंचाने के बाद अभी भी घुमका क्षेत्र के सहकारी समितियों में यूरिया की किल्लत बनी हुई है। इस साल के खरीफ सीजन के शुरुआती दौर से ही रासायनिक उर्वरकों जबर्दस्त कमी से किसानों को महंगे दामों में खाद खरीदना पड़ा है तकरीबन दो महीने से समितियों में यूरिया का स्टॉक खत्म हो चुका है। जिले में समितियों को यूरिया उपलब्ध कराने के लिए प्रशासन के आला अफसरों ने करीब दो हजार मीट्रिक टन यूरिया रेक प्वाइंट से सीधे समितियों को भेजा जो अभी भी अपर्याप्त बताया जा रहा है वहीं समिति का स्टॉक भी कुछ ही दिनों में खाली हो गया। घुमका, पटेवा समेत क्षेत्र के कृषि केंद्रों और खाद विक्रेताओं के यहां दोगुने से अधिक कीमत में बेचने की शिकायतों पर कृषि विभाग की खामोशी से प्रशासन पर उंगली उठना स्वाभाविक है।

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