पायनियर संवाददाता-चारामा
पर्सनल, होम, कार जैस लोन बैंको से लेने के दौरान बैंक द्वारा ग्राहकों की मर्जी बगैर या दवाब पूर्ण बीमा बेचने के मामले सामने आ रहे है। यहां तक कि कुछ बैंकों में बीमा नहीं खरीदने पर लोन नहीं देने की बात तक कह दी जाती है। बैंकों में लोन के एवज में ग्राहकों को बीमा करने पर बाध्य किया जा रहा है। जबकि बैंकों में ग्राहकों के अनुसार ही बीमा कवर लोन के वक्त दिये जाने का नियम है।
लोन की जरूररत में मजबूरी वश ग्राहको केा बीमा की मोटी रकम पुन: बैंकों में देनी पड रही है। ऐसे में ग्राहक बैंकों के इस दवाबपूर्ण रवैये से परेशान नजर आ रहे हैं। हालाकि लोन के एवज में बीमा देना गलत नहीं, लेकिन बीमा की अधिक राशि से ग्राहक परेशान नजर आते हैं। हालाकि आरबीआई, बीमा नियामक इरडा या किसी भी बैंक का नियम लोन के बदले बीमा करने के लिए बाध्य नहीं करता है। लोन के वक्त बीमा लेना या न लेना और किस तरह का बीमा लेना यह पूरी तरह से ग्राहक पर निर्भर करता है। लोन लेने के दौरान बीमा क्यों किया जाता है यह समझना भी जरूरी है अगर लोन लेने के बाद लोन लेने वाले की मौत हो जाती है तो लिया गया लोन चुकाने की जिम्मेदारी परिवार के दूसरे सदस्यों पर न आये, इसलिए बीमा कवर लेना आवश्यक है। अगर लोन के साथ बीमा नहीं होगा, तो मृत्यु के बाद लोन की राशि उनके परिवार को भरना होगा। इसलिए बीमा आवश्यक है, जिसके लिए बैंकों में टर्म इंश्योरेंस के प्लान दिये जाने का नियम है जो कम प्रीमियम में लोन को कवर कर सकता है। जिससे किसी ग्राहक को केाई दिक्कत भी नहीं होगी, लेकिन बैंको मे लोन के लिए बीमा की अनिवार्यता बताते हुए रेगुलर एवं रिर्टन प्लान दिये जा रहे है। क्योंकि रेगुलर और रिटर्न प्लान महंगे होते हैं। ऐसे मे लोन लेने वाले ग्राहक केा बीमा की मोटी रकम से जुझना पड़ता है। इसे ऐसे समझा जा सकता है अगर किसी को 15 साल के लिए 30 लाख के लोन पर कवर चाहिए तो उसे टर्म इंश्योरेंस प्लान पर सालाना प्रीमियम 3200 से 3500 रुपए देना होगा । यानी 15 साल में कुल 48 हजार रुपये प्रीमियम ही दिया जाएगा। अलग अलग बैंको मे प्रीमियम की राशि में थोड़ा उपर नीचे हो सकता है। वही जब 30 लाख रुपए लोन पर रेगुलर और रिर्टन बीमा कराया जायेगा तो यह राशि प्रतिवर्ष 25000 से अधिक होगी। वही बैंकों में इस 25000 की राशि को लोन के अंतिम वर्षों तक न लेकर 05 वर्ष का निर्धारित कर दिया जाता है यानि पुरे 15 वर्ष का प्रीमियम 05 वर्ष में लेकर ग्राहकों की हालत बैंकों द्वारा पतली कर दी जाती है। क्योंकि ग्राहकों को लोन के बदले किये जाने वाले टर्म इंश्योरेंस के नियम का पता नहीं होता है इसलिए वह लोन की आवश्यक्ता पर बैंक द्वारा दिये जाने वाले रेगुलर और रिटर्न बीमा की पालिसी लेकर फंस जाता है। एक ओर ग्राहक लोन की किश्त के बोझ तले दबा होता है ऐसे में बीमा की भारी भरकम राशि उसे दवाब में ला देती है।
फिर भी ग्राहक बैंकों के दवाबपूर्ण लोन को ले लेता है, क्योंकि उसे अपने कार्य करने के लिए पैसों की आवश्यकता होती है और पैसे बैंक ही दे सकता है। ऐसे में ग्राहकों को जागरूरक होकर लोन लेते वक्त बैंक में रेगुलर और रिटर्न बीमा के बदले टर्म इंश्योरेंश की जानकारी लेकर बीमा करना चाहिए। ताकि बीमा की मोटी और भारी भरकम रकम के बोझ तले ग्राहक दबे न।
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