रायगढ़
शौचालय का सीधा संबंध स्वच्छता, आधी आबादी की निजता, विकसित देश की पहचान आदि के साथ जुड़ा है। पर्यावरणविदों ने खुले में शौच को पर्यावरण की सुरक्षा के लिए भी काफी नुकसानदायक बताया है। तभी तो आमजनों को शौचालय के प्रति जागरूक करने केउद्देश्य से नवंबर माह की 19 तारीख को विश्व शौचालय दिवस (वर्ल्ड ट्वायलेट डे) मनाया जाता है। खुली सोच से ही खुले में शौच की आदत को मात दी जा सकती है। विश्व शौचालय दिवस पर इस वर्ष का थीम ‘सस्टेनेबल सैनिटेशन एंड क्लाइमेट चेंजÓ यानी स्वच्छता और जलवायु परिवर्तन है। गुरुवार को कलेक्टोरेट स्थित सृजन सभाकक्ष में डीएम भीम सिंह (आईएएस) ने स्वच्छता सर्वे पर बैठक ली जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा, ओडीएफ फ्री होने के बाद भी जिले के लोग अभी भी खुले में शौच करते हैं। यह चिंताजनक है उन्हें जागरूक करने की जरूरत है। निगम आयुक्त आशुतोष पाण्डेय ने बताया, 35 लाख रुपए की मदद से कई सार्वजनिक शौचालयों की मरम्मत की जाएगी और यह तय किया जाएगा कि कोई भी व्यक्ति खुले में शौच न करें। खुले में शौच से जल की गुणवत्ता खराब हो जाती है और यह पीने के लायक नहीं रहता है। इससे जल जनित बीमारियां होने की संभावनाएं ‘यादा होती हैं। जल की गुणवत्ता में एक खास पहलू है कि इसमें मल की मौजूदगी नहीं होनी चाहिए। इसलिए जब पेयजल की बैक्टीरियोलॉजिकल जांच की जाती है तो उसमें सबसे पहला उद्देश्य मल प्रदूषण की उपस्थिति की जांच करना होता है। एक खास तरह के बैक्टीरिया की मानव मल के जल में उपस्थिति की जांच की जाती है। एक खास तरह की बैक्टीरिया मानव मल के जल में उपस्थिति का संकेत देती है, जिसे ई-कोलाई कहते हैं। यूनिसेफ के अनुसार एक ग्राम मल में 1 करोड़ वायरस, एक लाख बैक्टीरिया और एक हजार परजीवी सिस्ट पाए जाते हैं। विश्व शौचालय दिवस वैश्विक स्वच्छता संकट से निपटने हेतु प्रेरित करने वाला एक महत्वपूर्ण दिवस है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य विश्व में सभी लोगों को 2030 तक शौचालय की सुविधा उपलब्ध करवाना है। यह संयुक्त राष्ट्र के छह सतत विकास लक्ष्यों का हिस्सा है। सबको शुद्ध पेयजल और स्वच्छता की सुविधा उलब्ध कराने का लक्ष्य भी संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों में रखा गया है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 4.2 अरब आबादी को आज भी ठीक से शौचालय उपलब्ध नहीं है और वह गंदगी में रहने को मजबूर है। 67.3 करोड़ आबादी खुले में शौच करने को मजबूर है।
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