July 1, 2025

मनाया गया पोला तिहार : जमकर दौड़े सजे-धजे बैल, खेलों के आयोजन भी हुए

पूजा-पाठ के बाद बच्चों ने भी मिट्टी के बैल दौड़ाए

राजनांदगांव@thethinkmedia.com

छत्तीसगढ़ अपनी संस्कृति और त्योहारों के लिए दुनियाभर में मशहूर है। यहां के प्रमुख त्योहारों में से एक त्योहार है पोला। कोरोना महामारी के बीच छत्तीसगढ़ का पारंपरिक त्योहार पोला जिले में मनाया गया। लोगों ने बाजार से मिट्टी के बैल, बर्तन खरीदकर घर में बने पकवानों को उसमें रखकर पूजा-अर्चना की, ताकि उनके घर में अन्न की कमी न हो। वहीं बच्चे मिट्टी के बैलों के साथ खूब खेलते नजर आए।
ग्रामीण क्षेत्र में आज के दिन कई तरह की खेल प्रतियोगिताएं भी आयोजित हुई। विशेषकर कुछ स्थानों पर आयोजित होने वाली बैल दौड़ देखने लोग जमा हुए। पोला तिहार के मौके पर बैल दौड़ का आयोजन काफी पुरानी पंरपरा है। सजे हुए बैलों के साथ ग्रामीण खुद भी दौड़ते हैं। इसके बाद यहां कई और भी तरह के खेलों के आयोजन किए जाते हैं जिनमें बच्चे, महिलाएं और पुरुष सभी भाग लेते हैं। शहर के नंदई चौक, चिखली में भी बैल दौड़ का आयोजन हुआ।
पोला का त्योहार मूलत: खेती-किसानी से जुड़ा हुआ त्योहार है। खेती का काम खत्म हो जाने के बाद भाद्र पक्ष की अमावस्या को यह त्योहार मनाया जाता है. मान्यता है कि इसी दिन अन्नमाता गर्भ धारण करती हैं और धान के पौधों में इस दिन दूध भरता है, इसलिए यह त्योहार मनाया जाता है.
0 मिट्टी से बने बैलों और बर्तनों की करते हैं पूजा (हाईलाईट)
आज के दिन लोग खेतों में नहीं जाते हैं। आज के दिन विशेष पकवान बनाते हैं- जैसे ठेठरी, खुरमी, गुड़-चीला। इन पकवानों को मिट्टी के बर्तनों, खिलौने में पूजा करते समय भरते हैं, ताकि घर में अन्न की कमी न हो। पुरुष अपने बैलों को सजाते हैं और पूजा करते हैं। बच्चे मिट्टी के बैलों को पूजते हैं और घर-घर लेकर जाते हैं, जहां उन्हें दक्षिणा मिलती है। बैलगाड़ी वाले अपने बैलों को सजाते हैं और दौड़ प्रतियोगिता कराते हैं।

पोला पर्व का पौराणिक महत्व

पोला पर्व का पौराणिक महत्व भी है। बताया जाता है कि इस दिन भगवान कृष्ण को उनके मामा कंस मारना चाहते थे। कंस ने कई राक्षसों से कृष्ण पर हमला कराया, लेकिन सभी नाकाम रहे। इन्हीं में एक राक्षस था पोलासुर, जिसका भगवान कृष्ण ने वध कर दिया था और इसी के बाद से भादो अमावस्या को पोला के नाम से जाना जाने लगा।

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