September 16, 2025

शिव अनादि हैं जिनका आदि और अंत नहीं: महंत वैष्णवदास

थानखम्हरिया

मनुष्य की पांच कर्मइंद्रिया उसकी साधना में बाधक बनती हैं। रामेश्वरम में स्वयं भगवान राम ने शिवलिंग की स्थापना कर संकेत दिया कि जब तक कर्मइंद्रियों पर नियंत्रण नहीं किया जायेगा साधना फलीभूत नहीं होगी।

समीपस्थ ग्राम पतोरा में आयोजित रूद्राभिषेक आयोजन में कथाव्यास महंत वैष्णवदास जी ने कहा कि श्रृष्टि के प्रथम देवता रूद्र भगवान ही हैं जिनका आदि और अंत नहीं है। शिव अनादि हैं, अजन्मा हैं और श्रृष्टि के नियामक भी हैं। भगवान शिव तीनों लोकों के गुरू भी हैं। गुरू कृपा करते हैं तो साधक के जीवन में भगवान भी गुरू रूप में अवतरित हो जाते हैं। मनुष्य शरीर में शिव अहंकार, ब्रह्मा बुद्धि, चंद्रमा मन और विष्णु चित्त के प्रतीक हैं। बिना अहंकार जीवन में कोई क्रिया नहीं होती।

अहंकार ऐसा दुर्गुण है जो हजारों सद्गुणों को भस्म कर देता है। साधक की वर्षों की तपस्या छोटे से अहंकार से नष्ट हो जाती है। अहंकार के बिना जब हमारी कोई क्रिया नहीं होती तो इतने विशाल श्रृष्टि की कैसे होगी। शिव ने भी एक बार राक्षसों के संहार के लिये धनुष उठाया और काम पूरा होते ही उसे किनारे कर दिया।
अपने अहंकार को क्रिया के होने तक स्वीकृति दें पश्चात उसका त्याग कर दें। महाराज ने कहा शिव विश्वास तथा पार्वती श्रद्धा के प्रतीक हैं। शिव सबका मंगल, कल्याण करने वाले तथा शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता हैं। समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष का पान शिव ने किया ताकि ब्रह्माण्ड के जीव विष से विषाक्त होने से बच जायें। शिव कल्याण के सर्वोच्च स्वरूप हैं। इनका एक नाम आशुतोष भी है। शिव की कृपा से ही तुलसी जैसे सामान्य व्यक्ति में इतनी सामर्थ्य आ गयी कि उन्होंने रामचरित मानस जैसा दिव्य ग्रंथ रच दिया। प्रत्येक जीव के जीवन में कोई न कोई संशय आता है ऐसी स्थिति में शिव की शरण ही श्रेयस्कर है। सती के जीवन में भी संशय आया जिसे शिव की प्रेरणा से भस्म किया गया। श्रद्धा जब तक अचल नहीं होगी शिव का साथ नहीं होगा।
राम और शिव का संबंध बताते हुये महाराज जी ने कहा कि ये एक दूसरे के मालिक, मित्र और नौकर भी हैं। दुनिया और शिव के विवाह का अंतर बताते हुये महाराज जी ने कहा कि जब काम की प्रेरणा सताती है तब दुनिया वाले विवाह करते हैं लेकिन जब विश्व कल्याण के लिये राम की प्रेरणा होती है तब शिव विवाह करते हैं। शिव के चिता भस्म का संदेश बताते हुये कहा कि मनुष्य का जीवन नश्वर है चिता की भस्म याद दिलाती है कि मोह माया ममता में आशक्त न होकर जीवन के कर्तव्य का पालन करें अंत में शरीर को भस्म होना ही है। शिव के गले का सर्प हमें बताता है सर्प काल का प्रतीक है हमारे आभूषण काल का कारण बन सकते हैं। ग्राम पुरोहित संजय तिवारी के आचार्यत्व में 57 जोड़ों ने सामूहिक रूद्राभिषेक किया। प्रारंभ में कृष्णा साहू, रामखिलावन साहू, दिनेश विश्वकर्मा, राजेश साहू, पेखन साहू, विनोद साहू, लक्ष्मण साहू, भरत साहू, ज्ञानेश्वर वर्मा, पवन साहू, टीकाराम साहू, पोखन पटेल, बीरबल साहू, जागेश। वर साहू, अनिल सिंघानिया, ओम साहू आदि ने पुष्पगुच्छ से महाराज जी का
स्वागत किया।

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