मनोरा
कचरा प्रबंधन से रोजगार मिलने का सपना दिखाकर स्व. सहायता समूह की महिलाओं को जिले भर में रिक्शा पकड़ाकर गीला और सूखा कचरा दुकानों और घरों में जा-जाकर उठाने के कार्य में लगाया गया था। महिलाओं को स्वच्छाग्रही का नाम दिया गया था। लॉक डाउन के प्रभाव में महिलाओं का यह कार्य बंद हो चुका है और गीला-सूखा कचरा प्रबंधन योजना का मनोरा विकासखंड में दम निकल चुका है। मनोरा विकासखंड की महिला समूहों से मिली जानकारी के मुताबिक उन्हें ना तो सरकार से किसी प्रकार की मदद मिल रही है और ना ही ग्रामीणों से कचरा उठाने के नाम पर कुछ पैसा मिल रहा है।
दिन भर का समय जाया हो रहा है वह अलग। महिलाओं ने बताया कि मेहनत की तुलना में आमदनी शून्य होने की वजह से काम को बंद कर दिया गया है। सरकार की ओर से अगर कोई अनुदान या सहायता मिले तो इसपर विचार किया जा सकता है। अगर मदद नहीं मिली तो स्वच्छता के कार्य करने की सोचना हमारे बस में नहीं है। उन्होंने कहा, भूखे पेट रहकर काम नहीं किया जा सकता है इसलिए जिस कार्य में मजदूरी मिलने की संभावना होगी उसी को प्राथमिकता दिया जाएगा।
स्वच्छता का दावा फेल
मनोरा विकासखंड के ग्राम डडग़ांव से एक महिला को स्वच्छता के क्षेत्र में बेहतर कार्य करने को लेकर प्रधानमंत्री के हाथों पुरस्कार दिया गया था। अब उसी विकासखंड की हालत दयनीय है। यहां कचरा सड़कों पर बिखरा पड़ा है और स्वच्छता पर किए गए कार्र्योंं की पोल खुलकर सामने आ रही है। महिलाओं के द्वारा कचरा उठाना बंद कर देने से क्षेत्र में गंदगी की स्थिति निर्मित हो रही है।
सरकार से सहयोग की उम्मीद
समूह की महिलाओं का कहना है कि काम करने के लिए उन्हें आर्थिक मदद की आवश्यकता है। दुकान और मकानों से कचरा उठाने का पैसा नियमित नहीं मिलता है। कुछ लोग देते हैं और कुछ लोग नहीं देते हैं। नियमित आय का जरिया बनने पर ही बात बन सकती है। हमें सरकार से मदद की उम्मीद है।
स्वच्छताग्रही महिलाएं है डोर टू डोर कचरा कलेक्शन कर प्रबंधन का कार्य करती हैं जिसके लिए प्रत्येक घर और दुकान से 10 रुपए देने होंगे और इस पैसे और कचरे को बेंच कर गुजारा भत्ता निकालेंगे। उन्हें हर माह 2 से 4 हजार दिलाने का प्रयास जारी है। इसके लिए स्टेट लेवल पर बात रखी गई है।
राजेश जैन, सलाहकार एसबीएम
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