धान के साथ मूंग और उड़द की भी ले सकेंगे फसल
भाटापारा@thethinkmedia.com
अति या अल्प वृष्टि। मौसम के यह बदलाव, किसानों को हमेशा संकट में डालते रहे हैं। यह परेशानी अब दूर की जा सकती है, एरोबिक सिस्टम की मदद से। दिलचस्प यह कि इस विधि से ली जाने वाली धान की फसल के साथ, मूंग और उड़द जैसी दलहन की फसल भी ली जा सकेगी।
ऐसे किसान, जिनके खेत एक समान यानी समतल नहीं हैं, उनके लिए राहत की खबर। अति या अल्प वृष्टि से होने वाले नुकसान से हमेशा के लिए छुटकारा मिलने जा रहा है। एरोबिक सिस्टम नाम है उस विधि का, जिसकी मदद से दोहरा लाभ होगा। पहला यह कि हर तरह की बारिश के बीच यह विधि कारगर है। दूसरा लाभ यह होगा कि इस विधि से ली गई धान की फसल के बीच मूंग और उड़द जैसी दलहन की भी फसल ली जा सकेगी।
यह है एरोबिक सिस्टम
गेहूं के खेतों की तरह खेत को छोटे-छोटे हिस्सों में बांटकर छोटी मेड़ बनाएं। इससे जल प्रबंधन में आसानी होगी, याने अल्प बारिश के दिनों में नमी बनी रहेगी और अतिवृष्टि जैसे समय में निकासी की व्यवस्था पक्की की जा सकेगी। ऊंची जमीन के लिए शीघ्र तैयार होने वाली और निचली जमीन के लिए, मध्यम उम्र की प्रजाति की बोनी करें। बोनी के लिए सीड ड्रिल या जीरो टिलेज का उपयोग करें। अपेक्षित परिणाम मिलेगा। यह सुविधा नहीं होने की स्थिति में छिड़काव पद्धति को उपयोग में लाया जा सकता है।
दलहन की बोनी साथ में : एरोबिक सिस्टम से धान की फसल लेने वाले किसान, दो कतार के बीच की खाली जगह पर उड़द या मूंग की बोनी भी कर सकेंगे। इससे धान के साथ, दलहन की फसल लेने से दोहरा लाभ होगा। दलहन के लिए दोनों प्रजातियां, इसलिए सुझाई गई हैं क्योंकि इनकी परिपक्वता अवधि सबसे कम होती है और भरपूर उत्पादन भी देतीं हैं।
पहले भांठा-टिकरा : एरोबिक विधि के मूल में, बरसों पुरानी वह विधि है जिसे अपने प्रदेश में भांठा- टिकरा के नाम से जाना जाता था ।अध्ययन और अनुसंधान के बाद यही भांठा- टिकरा विधि, एरोबिक सिस्टम का आधार बनी याने किसानों का परंपरागत अनुभव आज भी अनुसंधान का मुख्य सहारा बना हुआ है।
संकट जो दूर होगा : एरोबिक सिस्टम से धान की फसल लेने वाले किसानों को सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि अति या अल्प वृष्टि जैसी परिस्थितियों में भी ऐसे खेतों की नमी बनी रहेगी। यह विधि, खासतौर पर बस्तर, सरगुजा, जशपुर, और रायगढ़ जिले में किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है, जहां पहाड़ी क्षेत्र बड़े पैमाने पर फैलाव लिए हुए हैं।
- एरोबिक सिस्टम पहाड़ी क्षेत्र के लिए वरदान से कम नहीं है। इसके साथ ही मैदानी क्षेत्र के किसान भी इस विधि को अपना सकते हैं क्योंकि ऐसे क्षेत्र में ही मौसम का असर सबसे ज्यादा देखा जाता रहा है।
-डॉ.एसआर पटेल, रिटायर्ड साइंटिस्ट (एग्रोनॉमी), इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर
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