सैकड़ों सफाई कर्मियों की नियुक्तियों के बावजूद 27 वार्डों में दिया गया है ठेका, शहर में कई मुक्कड़, कई जगहों पर तो लंबे समय से नहीं हुई सफाई
राजनांदगांव@thethinkmedia.com
प्रतिमाह लगभग 70 लाख रुपए फूंकने के बावजूद शहर में सफाई व्यवस्था ढर्रे पर है। शहर भर में कई मुक्कड़ बन चुके हैं जबकि निगम प्रशासन शहर के साफ-सुथरा होने का दावा करता आया है। स्वच्छता सर्वेक्षण में शहर की स्थिति को देखकर भी हकीकत सामने आ जाती है। हकीकत यह भी है कि सफाई व्यव्स्था और ठेके की आड़ में लाखों का गोलमोल हो जाता है।
लाखों रुपए कचरे के व्यवस्थापन में बर्बाद होने के बावजूद नतीजा सिफर ही है। निगम के पास सफाई कर्मियों की एक बड़ी तादाद है। 285 सफाई कर्मी निगम के पास हैं। इनमें से 170 कर्मचारी नियमित हैं तो 115 कर्मचारी प्लेसमेंट के माध्यम से नियुक्त किए गए हैं। इतनी बड़ी संख्या में सफाई कर्मियों की मौजूदगी के बावजूद 27 वार्डों में सफाई \का ठेका दिया गया है। दूसरी ओर डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण के काम में भी 400 से अधिक स्वच्छता दीदीयां लगी हुई हैं।
शहर की तस्वीरें इस पूरी व्यवस्था और योजना पर पलीता लगा देती हैं। अस्पताल के आसपास, सीटीहार्ट रेस्टोरेंट के करीब, नए बस स्टैंड से लगे कुछ हिस्से, ममता नगर, सिविल लाईन, शीतला मंदिर के आसपास सहित कई इलाके हैं जहां सफाई की व्यवस्था चरमराई हुई दिखती है। तस्वीरें साफ बयान करती है कि तकरीबन 70 लाख रुपए प्रतिमाह खर्च महज फिजूलखर्ची साबित हो रही है।
प्रभारी को बजट की जानकारी नहीं
सफाई व्यवस्था के प्रभारी निगम के अजय यादव हैं। जब उनसे पिछले बजट में सफाई के लिए आबंटित बजट की जानकारी मांगी गई तो उन्होंने इससे सीधे पल्ला झाड़ दिया। उन्होंने कहा कि आबंटित बजट की जानकारी अकाउंटेंट ही देंगे इस बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं हैं। वहीं शहर में बदहाल सफाई व्यवस्था को लेकर सवाल सुनने से पहले ही उन्होंने फोन काट दिया। पूरे शहर में सफाई व्यवस्था को लेकर जिम्मेदार निगम अफसर ही इन मामलों से पल्ला झाडऩे लगें तो पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़े होना लाजिमी हो जाता है।
सफाई ठेका की आड़ में भ्रष्टाचार
निगम महिला समूहों को वार्डों में सफाई का ठेका देता आया है। यह पूरी प्रक्रिया दिखती तो पारदर्शी है लेकिन इसमें भी पर्दे के पीछे कुछ और ही होता आया है। 27 वार्डों में महिला समूहों को जो ठेका दिया गया है असल में वह भाजपा और कांग्रेस के पार्षदों को मिले होते हैं। सत्तापक्ष की सहमति के साथ इन ठेकों को आपस में बांट लिया जाता है। इन 27 वार्डों में ठेके के लिए प्रतिमाह 30 लाख रुपए का आबंटन होता है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि असल में इन ठेकों के पीछे प्रतिमाह लाखों रुपए का खेल हो जाता है। निगम में यह रिवाज सालों से चला आ रहा है।
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