सक्ती- वर्तमान में पूरे देश भर में मल्टीप्लेक्स थिएटर एवं बड़े सिनेमाघरों में चल रही द कश्मीर फाइल्स फिल्म को लेकर जहां लोगों में काफी उत्साह देखा जा रहा है, तो वही बाराद्वार के साहित्यकार रमेश सिंघानिया ने भी इस फिल्म पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए एक भेंट वार्ता में बताया कि कश्मीरी पंडितों की हत्या और उनके पलायन पर आधारित “द कश्मीर फाइल्स” फिल्म की आजकल काफी चर्चा है। फिल्म देखकर लोग भड़क रहे हैं और उत्तेजित हैं कि इतने साल तक उनसे यह भयावह सच छुपाया गया, सिंघानिया कहते है कि वास्तव में 32 वर्षों तक भाजपा को छोड़कर किसी राजनैतिक दल ने इस मामले को कभी नहीं उठाया, वे तुष्टिकरण की ही राजनीति करते रहे। जबकि भाजपा ने उनके लिए सहयोग भी जुटाया,पाकिस्तान समर्थित चरमपंथियों की ओर से कश्मीरी पंडितों की हत्या और उसके बाद उनके पलायन के दृश्यों को फिल्म में हू बहू उतारा गया है। फिल्में भावाभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम होती है,अनेको राज्यो में बीजेपी की सरकारों ने फिल्म को टैक्स फ्री भी किया है, और बीजेपी के लोग इस फिल्म को देखने के लिए लोगों से आग्रह भी कर रहे हैं। कहीं कहीं फिल्म को मुफ्त दिखाने की व्यवस्था भी लोगों द्वारा की जा रही है। म.प्र. सरकार ने इस फिल्म को देखने के लिए पुलिस वालों को एक दिन की छुट्टी भी दी है।इस फिल्म को वाट्स एप लिंक पर देखने की सुविधा भी उपलब्ध है, परंतु कुछ लोगों द्वारा इसे षड़यंत्र का हिस्सा माना जा रहा है जिससे फिल्म निर्माता आय कम होने से हतोत्साहित होकर ऐसे विषयों पर फिल्म बनाने की न सोचें,।यह फिल्म कितनी सुर्खियां बटोर रही है वह इससे सिद्ध होता है कि स्वयं प्रधानमंत्री ने भाजपा संसदीय दल की बैठक में इसकी चर्चा करते हुए कहा कि “सालों से दबाया सत्य बाहर आने से कुछ लोग परेशान हैं”पाकिस्तान समर्थक आतंकवादियों की बर्बरता, कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार और उनके पलायन से संबंधित सच को आम जनता तक पहुंचाने के लिए फिल्म के निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री के प्रति लोगों ने आभार व्यक्त किया है। कपिल शर्मा द्वारा फिल्म को प्रमोशन करने से इनकार करने की भी लोगों ने निंदा की है। लोगों का कहना है कि अत्याचारियों को उनके किए की सजा मिलनी चाहिए और कश्मीरी पंडितों को जल्द न्याय दिलाने के लिए अयोध्या मसले की तर्ज पर प्रतिदिन सुनवाई होनी चाहिए।फिल्म में आजाद भारत में हिंदुओं के प्रति ऐसा भीषण अत्याचार देखकर लोगों के दिल दहल उठे कुछ लोग शोक विव्हल होकर रो पड़े।फिल्म में बिट्टा कराटे अभिनीत पात्र द्वारा अपने साक्षात्कार में आर. एस. एस. का आदमी होने के कारण सतीष टिक्कू की नृशंस हत्या करना स्वीकार किया गया है। वास्तव में कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाए रखने में संघ की बड़ी भूमिका है। अखिल भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष मुखर्जी ने कश्मीर मसले पर सन् 53 में अपने प्राण उत्सर्ग कर दिए थे।
रमेश सिंघानिया कहते है कि फ़िल्म के माध्यम से आजाद भारत में हिंदुओं पर ऐसा बर्बर अत्याचार देखकर दिल दहल गया,कश्मीरी पंडितों को न्याय दिलाने के लिए उन पर हुए अत्याचार के मामलों की प्रतिदिन सुनवाई होनी चाहिए,32 वर्षों से यह मामला सिर्फ भाजपा ने उठाया बाकी दल तुष्टिकरण का पहाड़ा पढ़ते रहे
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